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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘तो यह बात है!’’ रजनी की माँ ने पूछ लिया, ‘‘इन्द्र को पता है अथवा नहीं?’’

‘‘उसको कोई पत्र आया हो तो पता होगा। मेरा विचार है कि उसको कोई पत्र नहीं आया।’’

‘‘कहाँ है वह आज?’’

‘‘विष्णु का किसी से झगड़ा हो गया था और उसको कुछ चोट आयी है। उसको हस्पताल में लाया गया है और इन्द्र उसका समाचार जानने वहाँ ठहर गया है।’’

‘‘रजनी की माँ ने कह दिया, ‘‘विष्णु के उसकी पत्नी के विपरीत झूठे लांछन लगाने के पश्चात् इन्द्र को उसका मुख नहीं देखना चाहिये।’’

‘‘इन्द्र की नानी, मामी और मौसी, सब हस्पताल में आयी हुई थीं। इस कारण इन्द्र ने वहाँ ठहरना ही उचित समझा है।’’

‘‘क्या चोटें बहुत ज्यादा आयी हैं?’’

‘‘पता नहीं। देखने तो मैं भी जा रही थी, परन्तु इन्द्र ने मुझको मना कर दिया था।’’

इन्द्र रात के दस बजे कोठी पर आया तो रजनी और उसकी माँ समाचार जानने के लिये उसके पास आ गयीं। इन्द्र ने सुना दिया, ‘‘विष्णु का देहान्त हो गया है। उसका घायल शरीर स्टेशन रोड पर मध्याह्नोत्तर ढाई बजे पाया गया था। पुलिस का एक कॉन्स्टेबल उसको उठाकर हस्पताल ले आया। विष्णु की जेब से उसके पते का कार्ड मिला तो उसके घर वालों को सूचना भेज दी गयी।

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