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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


ऐना की कोठी के बाहर भीड़ जमा थी। बहुत-से पुलिस के लोग भी वहाँ जमा थे। एक एम्बुलैंस कार वहाँ खड़ी थी। रजनी का विचार था कि कुछ दुर्घटना हो गयी है। रजनी का मुख विवर्ण हो गया। इन्द्रनारायण ने उसको देखा तो कह दिया, ‘‘हम अपने कार्य में असफल हो गये हैं न?’’

‘‘मेरा मन अपने प्रमाद के कारण अपने को कोस रहा है।’’

इस समय वे वहाँ एकत्रित भीड़ में पहुँच चुके थे। इन्द्र ने एक से पूछ लिया, ‘‘क्या हुआ है यहाँ?’’

‘‘किसी को विष दे दिया गया है। पुलिस जाँच करने आयी है।’’

‘‘कोई मर गया है क्या?’’

‘हाँ, एक बाराबंकी के नवाब थे। यहाँ एक अंग्रेज औरत रहती थी। ये नवाब उसके यहाँ आया करते थे। सुना है, प्रातः का खाना खाकर यहाँ आये थे और यहाँ आकर बीमार हुए मर गये। उनके शव को पुलिस पोस्टमार्टम के लिये ले गयी है।’’

इन्द्रनारायण ने रजनी की ओर देखकर कहा, ‘‘हमको अब चलना चाहिये।’’

‘‘हाँ।’’ रजनी लौट पड़ी। वे अभी दस पग भी नहीं गये थे कि स्ट्रेचर पर लेटे हुए ऐना को लाया गया और एम्बुलेंस कार में डालकर उसको ले जाने लगे। इन्द्रनारायण ने यह देखा तो रजनी से बोला, ‘‘ऐना को भी हस्पताल ले जाया जा रहा है।’’

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