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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


जॉर्ज हँस पड़ा।

ऐना ने पूछा, ‘‘यह हमको पीने क्यों नहीं देते?’’

‘‘यह बहुत महँगी होती है। इसीलिए पापा इसको अलमारी में ताला लगाकर ही रखते हैं।’’

‘‘मैं पापा से कहूँगी कि मुझको भी थोड़ी दिया करें।’’’

‘‘वे नहीं देंगे। हाँ, तुम मुझको कहो तो मैं तुमको लाकर नित्य दे सकता हूँ।’’

‘‘कहाँ से?’’

‘‘पापा की अलमारी से।’’

‘‘चोरी करोगे?’’

‘‘यह चोरी नहीं है। पापा इसको चोरी से रखते हैं। चोर की चोरी, चोरी नहीं होती।’’

दोनों हँस पड़े। जॉर्ज ने कहा, ‘‘अब तुम जाओ, जाकर सो जाओ।’’

‘‘मेरा जी बातें करने को करता है।’’

‘‘तो करो।’’

‘‘हमारे स्कूल में एक लड़का फ्रेडरिक है। वह मुझको बहुत सुन्दर लगता है।’’

‘‘मुझको एक लड़की बहुत ही सुन्दर लगती है।’’ जॉर्ज ने मुस्कुराते हुए कह दिया।

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