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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


इतने अंक लेकर उसको विश्वास हो गया कि वह मेडिकल कॉलेज में प्रवेश पा जायेगी। इस विश्वास के साथ ही उसको इन्द्रनारायण से हुए वार्तालाप का स्मरण हो आया। वह यह तो समझती थी कि इन्द्र के उससे अधिक अंक आये होंगे। अगले दिन जब ‘लीडर’ की प्रति मिली तो वह इन्द्रनारायण को यूनिवर्सिटी की इण्टर साइंस क्लास के पहले तीन लड़कों में देख चकित रह गयी।

उसका पूर्ण विश्वास था कि इन्द्र उसके घर के पते पर पत्र भेजेगा और वह पत्र दो दिन पश्चात् उसे नैनीताल में मिल जायेगा।

जब एक सप्ताह तक भी कोई पत्र नहीं आया तो उसने एक पत्र उसे लिखा और उसमें पत्र न लिखने का उलाहना देते हुए हँसी भी उड़ाई।

पत्र गया और ठीक दो सप्ताह के पश्चात् उसे इन्द्रनारायण का नमस्कार पहुँचे।

‘‘मेरा बधाई-पत्र न लिखने और अब इतनी देर से पत्र लिखने का कारण यह है कि मुझको परीक्षा-फल का ज्ञान आपके पत्र से ही हुआ था। उससे पूर्व मुझको पता नहीं चला कि परीक्षा-फल निकल गया है और आप फर्स्ट डिवीजन में पास हो गयी हैं।

‘‘मैंने अपने नानाजी से कह दिया था कि मुझको तार द्वारा सूचित करें। डाक तो सप्ताह में एक बार ही गाँव में पहुँचती है। मेरा कार्यक्रम यह था कि तार मिलते ही मैं लखनऊ चला आऊँगा और अपने नानाजी से आगे पढ़ने के विषय में राय करूँगा।

‘‘नानाजी का न तो तार ही आया, न ही कोई पत्र। आपका पत्र भी छः दिन में मिला और पत्र मिलते ही मैं लखनऊ चला आया हूँ। लखनऊ पहुँच मुझको पता चला कि नानाजी ने तार भेजा था। उन्होंने एक पत्र और समाचार-पत्र भी भेजा था, परन्तु दोनों को विष्णु ने मार्ग में ही गुम कर लिया।

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