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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘यदि किसी डॉक्टर अथवा वैद्य ने फीस माँगी तो तुरन्त वह ब्राह्मण पद से च्युत होकर वैश्य बन जायेगा।’’

‘‘फीस तो आप भी पूजा-पाठ की माँग लेते हैं।’’

इस पर रामाधार ने कह दिया, ‘‘यह बात किसी ने मेरे विषय में यदि कही है तो समझता हूँ कि मिथ्या कहा है। मैंने कभी किसी से कुछ नहीं माँगा। हाँ, भगवान् की कृपा से भारत-भूमि पर अभी हिन्दू-धर्म जीवित है और लोग स्वेच्छा से देते हैं। जो कुछ भी वे देते हैं मैं ले लेता हूँ।

‘‘अभी उस दिन पड़ोस के गाँव में एक समृद्ध बनिये ने देवी भागवत का पाठ करवाया था। पाठ होने के पश्चात् पाँच आने दक्षिणा दी थी। मैंने आशीर्वाद दिया और चला आया। वह महाजन मेरे पीछे-पीछे घर के द्वार तक आया और पूछने लगा, ‘पण्डितजी! दक्षिणा ठीक है क्या?’

‘क्या दिया है आपने?’ मैंने पूछ लिया।

‘तो गिना नहीं पण्डितजी?’

‘दक्षिणा गिनकर नहीं ली जाती।’

‘‘पण्डितजी! गिन डालो न?’

‘‘मैंने जेब से पैसे निकालकर उसके हाथ में रखते हुए कहा, ‘लाला! आप ही गिन डालो।’

‘‘उसने गिनकर कहा, ‘पाँच आने हैं।’

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