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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘तो उसने कोई अनर्गल बात कर दी थी क्या?’’

‘‘मेरे विचार में तो साधारण बात ही हुई थी। परन्तु जीजाजी तो बहुत मीन-मेख निकालने वाले हैं न। वे पिताजी के शुष्क व्यवहार से रुष्ट हो गये प्रतीत होते हैं। इसी कारण वे यहाँ भोजन करने नहीं आये। बाजार में पूरी खायी, ठण्डा पानी पिया और चल दिये।’’

‘‘इन्द्र के विषय में क्या निश्चय किया है?’’

‘‘इन्द्र पढ़ेगा। वह बोर्डिंग हाउस में रहेगा।’’

‘‘खर्चे का प्रबन्ध?’’

‘‘इन्द्र तो कहता था, ‘निर्बल के बल राम’ और जीजाजी ने इसका समर्थन कर दिया है।’’

‘‘तो क्या वह भी लौट गया है?’’

‘‘हाँ; कहता था कि तेरह जुलाई को फार्म भर देने के लिये आयेगा।’’

साधना की माँ ने अपनी लड़की और दामाद का इस प्रकार अनादर देख आँखों में आँसू भर लिये। उसका इन्द्र से मोह हो गया था। विष्णु तो उच्छृंखल हो गया था। उसको पक्का विश्नास था कि वह अपनी सहपाठिन ऐना-इरीन के साथ ही भाग गया था। रुपया वह जो चोरी से ले गया था, समाप्त होने पर लड़की से पृथक् होने पर विवश हो गया होगा।

साधना के पति अयोध्याप्रसाद से भी वह प्रसन्न नहीं थी। वह प्रायः किसी-न-किसी सरकारी कार्य से भ्रमण पर रहता था। साधना माँ के घर पर पड़ी रहती थी। यूँ भी साधना के हर प्रकार के खर्चे माँ के घर से चलते थे।

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