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उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

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इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


डॉक्टर साहब की पत्नी स्नेहालता नीला को वहां बैठे देख, घर से निकल आई और बैठक में जहां नीला बैठी थी, आकर पूछने लगी,

‘‘नीला! परचे कैसे किये हैं?’’

‘‘अच्छे हुए, हैं भाभी! तुम सुनाओ।’’

‘‘ठीक है, भगवान् की कृपा है।’’

‘‘पेट दर्द का क्या हाल है?’’

‘‘डॉक्टर साहब का कहना है कि यह कैंसर बन रहा है और मैं निश्चित रूपेण मृत्यु का ग्रास बनने जा रही हूं।’’

‘‘कैंसर?’’ नीला ने विस्मय में मुख देखते हुए कहा, ‘‘वह तो कहते हैं कि पान खाने, तम्बाकू चबाने अथवा सिगरेट पीने से यह रोग होता है और तुम तो कुछ भी नहीं खाती।’’

‘‘मैं तो एक बात जानती हूं कि मरना-जीना भाग्य के अधीन है। इसी से मुझे किसी प्रकार की चिन्ता नहीं है। मैं एक दिन दिल्ली जाऊंगी और वहां किसी योग्य वैद्य से चिकित्सा कराऊंगी।’’

‘‘भाभी! डॉक्टर की पत्नी होकर किसी वैद्य से चिकित्सा कराओगी? यह तो लज्जा की बात है।’’

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