लोगों की राय

उपन्यास >> प्रगतिशील

प्रगतिशील

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8573

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

88 पाठक हैं

इस लघु उपन्यास में आचार-संहिता पर प्रगतिशीलता के आघात की ही झलक है।


‘‘अज्ञात स्थान और मुझसे भी कई-कई दिन पृथक् रहना पड़ेगा।’’

‘‘यह कठिन समस्या है।’’

‘‘कुछ तो त्याग करना होगा।’’

‘‘कितने दिन के बाद मिला करेंगे?’’

‘‘सप्ताह में एक दिन अवश्य मिलूंगा।’’

‘‘यह तो टौलरेबल है।’’

‘‘तुम तैयार रहो। मैं एक सप्ताह में प्रबन्ध कर दूंगा।’’

प्रबन्ध हो गया। देहरादून-रुड़की की सड़क पर एक कोठी में नीला को दो नौकरानियों और एक नौकर के साथ रख दिया गया। डॉक्टर साहनी रविवार के दिन प्रात: चार बजे मोटर पर मेरठ से रवाना हो साढ़े आठ बजे देहरादून कोठी पर पहुंच जाता और उसी दिन सायंकाल पांच बजे चलकर नौ बजे घर आ जाया करता।

नीला के लापता हो जाने से बहुत हल्ला हुआ। उसको बहुत ढ़ूढ़ा गया और पता न मिलने पर यह समझा गया कि वह अपने कॉलेज के किसी विद्यार्थी के साथ भाग गई है। सन्देह बम्बई और कलकत्ता का किया गया।

डॉक्टर साहनी ने दो चक्कर बम्बई और तीन-चार चक्कर कलकत्ता के लगाये और अन्त में खोज समाप्त हुई। नीला के दिन पूरे हुए तो प्रसव के लिए उसे दिल्ली-शाहदरा के पास एक निर्धन के परिवार में ले जाकर रख दिया गया। नीला के लड़की हुई।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book