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प्रेम चतुर्थी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :122
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8580

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शिवबिलास–इसीलिए तो मैंने अब तक उनसे कहा नहीं। और फिर मौका भी नहीं मिला। डाक्टरी विभाग कितना ही अच्छा हो लेकिन मैंने जो संकल्प कर लिया है उस पर स्थिर हूँ। क्यों, तुम कुछ मदद कर सकोगे?

श्रीबिलास–वह देखिये, मियाँ घोड़े अस्तबल से निकले। अब कल से किसी दूसरे कोचवान के पाले पड़ेंगे, मारते-मारते भुरकस निकाल देगा। टूटी टमटम भी सटर-पटर करती हुई चली।

सन्तबिलास–मैं तो परीक्षा के पहले शायद आपकी कुछ मदद न कर सकूँ। उसके बाद मुझसे जो काम चाहें, ले सकते हैं।

शिवबिलास–एम.ए. से क्यों तुम्हें इतना प्रेम है।

श्रीबिलास–एम.ए. का अर्थ है ‘मास्टर आफ आर्टस’।

सन्तबिलास–यह मेरी बहुत पुरानी अभिलाषा है और अब लक्ष्य के इतना समीप आकर मुझसे नहीं हटा जाता।

शिवबिलास–अपने नाम के पीछे एम.ए., एल-एल. बी. का पुछल्ला लगाये बिना नहीं मानोगे।

सन्त–(चिढ़कर) कोई और भी मानता है या मैं ही मानूँ, सभी तो इन उपाधियों पर जान देते हैं और क्यों न दे, समाज में इसका सम्मान कितना है। अभी तक शायद ही कोई ऐसा मनुष्य हो जिसने अपनी डिग्रियाँ छोड़ दी हों। वे लोग भी जो असहयोग के नेता थे अपने नामों के साथ पुछल्ले लगाने में कोई आपत्ति नहीं समझते, नहीं बल्कि उस पर गर्व करते हैं आपके राष्ट्रीय कालेजों में भी इन्हीं डिग्रियों की पूछ होती है। चरित्र की कोई पूछता भी नहीं। जब हम इसी कसौटी पर परखे जाते हैं तो मेरे उपाधि प्रेम पर किसी को हँसने की जगह नहीं हैं।

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