कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
छह महीने बीत गये। संध्या का समय था। बेचू के लड़के मलखान के ब्याह की बातचीत करने के लिए मेहमान लोग आये हुए थे। बेचू स्त्री से कुछ सलाह करने के लिए घर में आया तो वह बोली–दारू कहाँ से आयेगी? तुम्हारे पास कुछ है?
बेचू–मेरे पास जो कुछ था, वह तुम्हें पहले ही नहीं दे दिया था?
स्त्री–उससे तो मैं चावल, दाल, घी, यह सब सामान लायी। सात आदमियों का खाना बनाना है। सब उठ गये।
बेचू–तो फिर मैं क्या करूँ?
स्त्री–बिना दारू लिए वह लोग भला खाने उठेंगे? कितनी नामूसी होगी।
बेचू–नामूसी हो चाहे बदनामी हो, दारू लाना मेरे बस की बात नहीं। यही न होगा ब्याह न ठीक होगा, न सही।
स्त्री–वह दुशाला धुलने के लिए नहीं आया है? न हो किसी बनिये के यहाँ गिरवी रख कर चार-पाँच रुपये ले आओ, दो-तीन दिन में छुड़ा लेना, किसी तरह मरजाद तो निभानी चाहिए? सब कहेंगे, नाम बड़े दरसन थोड़े। दारू तक न दे सका।
बेचू–कैसी बात करती है। यह दुशाला मेरा है?
स्त्री–किसी का हो, इस बखत काम निकाल लो। कौन किसी से कहने जाता है।
बेचू–न, यह मुझसे न होगा, चाहे दारू मिले या न मिले।
यह कह कर बाहर चला आया। दोबारा भीतर गया तो देखा स्त्री जमीन से खोद कर कुछ निकाल रही है। उसे देखते ही गड्डे को आँचल से छिपा लिया?
बेचू–मुस्कराता हुआ बाहर चला आया।
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