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प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :384
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8582

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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ


हम अपनी आन पर जान देते थे। हमने किसी के सामने सिर नहीं झुकाया। किसी के ऋणी नहीं हुए। सदैव गर्दन उठाकर चले; और अब यह नौबत है कि कफन का भी ठिकाना नहीं!

आधी रात गुजर चुकी। जीवनदास की हालत आज बहुत नाजुक थी। बार-बार मूर्छा आ जाती। बार-बार हृदय की गति रुक जाती उन्हें ज्ञात होता था कि अब अन्त निकट है। कमरे में एक लैम्प जल रहा था। उनकी चारपाई के समीप ही प्रभावती और उसका बालक साथ सोए हुए थे। जीवनदास ने कमरे की दीवारों को निराशापूर्ण नेत्रों से देखा जैसे कोई भटका हुआ पथिक निवास-स्थान की खोज में हो। चारों ओर से घूम कर उनकी आँखे प्रभावती के चेहरे पर जम गयीं। हा! यह सुन्दरी एक क्षण में विधवा हो जायगी! यह बालक पितृहीन हो जायगा! यही दोनों व्यक्ति मेरी जीवन आशाओं के केन्द्र थे। मैंने जो कुछ किया, इन्हीं के लिए किया। मैंने अपना जीवन इन्हीं पर समर्पण कर दिया था और अब इन्हें मझधार में छोड़े जाता हूँ। इसलिए कि वे विपत्ति भँवर के कौर बन जायँ। इन विचारों ने उनके हृदय को मसोस दिया। आँखों से आँसू बहने लगे।

अचानक उनके विचार-प्रवाह में एक विचित्र परिवर्तन हुआ। निराशा की जगह मुख पर एक दृढ़ संकल्प की आभा दिखायी दी, जैसे किसी गृहस्वामिनी की झिड़कियाँ सुन कर एक दीन भिक्षुक के तेवर बदल जाते हैं। नहीं, कदापि नहीं! मैं अपने प्रिय पुत्र और अपनी प्राण-प्रिया पत्नी पर प्रारब्ध का अत्याचार न होने दूँगा। अपने कुल की मर्यादा को भ्रष्ट न होने दूँगा। अबला को जीवन की कठिन परीक्षा में न डालूँगा। मैं मर रहा हूँ, लेकिन प्रारब्ध के सामने सिर न झुकाऊँगा। उसका दास नहीं, स्वामी बनूँगा। अपनी नौका को निर्दय तरंगों के आश्रित न बनने दूँगा।

‘‘निःसन्देह संसार मुँह बनायगा। मुझे दुरात्मा, घातक नराधम कहेगा। इसलिए कि उसके पाशविक आमोद में, उसकी पैशाचिक क्रीड़ाओं में एक व्यवस्था कम हो जायगी। कोई चिन्ता नहीं, मुझे संतोष रहेगा कि उसका अत्याचार मेरा बाल भी बाँका नहीं कर सकता, उसकी अनर्थ लीला से मैं सुरक्षित हूँ।’’

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