कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
यह प्रस्ताव भी स्वीकृत हुआ। फल यह हुआ कि घोड़े की पूँछ जल गयी। वह दो-तीन बार उछला-कूदा पर आगे न बढ़ा। पक्का सत्याग्रही था कदाचित् इन यंत्रणाओं ने उसके संकल्प को और भी दृढ़ कर दिया।
इतने में सूर्यास्त होने लगा। पंडित जी ने कहा– ‘‘जल्दी कीजिए नहीं तो मुहूर्त टल जायगा।’’ लेकिन अपने वश की बात तो थी नहीं। जल्दी कैसे होती। बराती लोग गाँव के बाहर जा पहुँचे। यहाँ स्त्रियों और बालकों का मेला लग गया। लोग कहने लगे ‘‘कैसा घोड़ा है कि पग ही नहीं उठाता।’’ एक अनुभवी महाशय ने कहा–‘‘ मार-पीट से काम न चलेगा। थोड़ा-सा दाना मँगवाइए। एक आदमी इसके सामने तोबड़े में दाना दिखाता हुआ चले। दाने के लालच में खट-खट चला जायगा।’’ मुंशी जी ने यह उपाय भी करके देखा पर सफल मनोरथ न हुए। घोड़ा अपने स्वत्व को किसी दाम पर बेचना न चाहता था। एक महाशय ने कहा– ‘‘इसे थोड़ी-सी शराब पिला दीजिए नशे में आ कर खूब चौकड़ियाँ भरने लगेगा।’’ शराब की बोतल आयी। एक तसले में शराब उंड़ेल कर घोड़े के सामने रखी गयी, पर उसने सूँघी तक नहीं।
अब क्या हो? चिराग जल गये मुहूर्त टल चुका था। घोड़ा यह नाना दुर्गतियाँ सह कर दिल में खुश होता था और अपने सुख में विघ्न डालनेवाले की दुरवस्था और व्यग्रता का आनंद उठा रहा था। उसे इस समय उन लोगों की प्रयत्नशीलता पर एक दार्शनिक आनंद प्राप्त हो रहा था। देखें आप लोग अब क्या करते हैं। वह जानता था कि अब मार खाने की सम्भावना नहीं है। लोग जान गये कि मारना व्यर्थ है। वह केवल अपनी सुयुक्तियों की विवेचना कर रहा था।
पाँचवें सज्जन ने कहा–अब एक ही तरकीब और है। वह जो खेत में खाद फेंकने की दो-पहिया गाड़ी होती है, उसे घोड़े के सामने ला कर रखिये। इसके दोनों अगले पैर उसमे रख दिये जायँ और हम लोग गाड़ी को खींचें। तब तो जरूर ही इसके पैर उठ जायेगें। अगले पैर आगे बढ़े, तो पिछले पैर भी झख मार कर उठेगे ही। घोड़ा चल निकलेगा।
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