कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
|
260 पाठक हैं |
मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
मुंशी जी बोले–जी हाँ, पहले आदमी भेजा, वह नाकाम वापस गया। सुना आज यहाँ हड़बोंग मची हुई है, स्वराज्यवाले किसी को अंदर जाने ही नहीं देते।
थानेदार–जी नहीं, यहाँ किसकी मजाल है जो किसी के काम में हाजिर हो सके। आप शौक से जाइए। कोई चूँ तक नहीं कर सकता। आखिर मैं यहाँ किस लिए हूँ।
मुंशी जी ने गौरवोन्मत्त दृष्टि से अपने साथियों को देखा और गली में घुसे कि इतने में मौलाना जामिन ने ईदू से बड़ी नम्रता से कहा–दोस्त, यह तो तुम्हारी नमाज का वक्त है, यहाँ कैसे आये? क्या इसी दीनदारी के बल पर खिलाफत का मसला हल करेंगे?
ईदू के पैरों में जैसे लोहे की बेड़ी पड़ गयी। लज्जित भाव से खड़ा भूमि की ओर देखने लगा। आगे कदम रखने का साहस न हुआ।
स्वामी घनानन्द ने मुंशी जी और उनके बाकी तीनों साथियों से कहा–बच्चा, यह पंचामृत लेते जाओ, तुम्हारा कल्याण होगा। झिनकू, रामबली और बेचन ने अनिवार्य भाव से हाथ फैला दिये और स्वामी जी से पंचामृत ले कर पी गये। मुंशी जी ने कहा–इसे आप खुद पी जाइए। मुझे जरूरत नहीं।
स्वामी जी उनके सामने हाथ जोड़ कर खड़े हो गये और विनोद भाव से बोले–इस भिक्षुक पर आज दया कीजिये, उधर न जाइए।
लेकिन मुंशी जी ने उनका हाथ पकड़ गली के सामने से हटा दिया और गली में दाखिल हो गये। उनके तीनों साथी स्वामी जी के पीछे सिर झुकाये खड़े रहे।
मुंशी–रामबली, झिनकू आते क्यों नहीं? किसकी ताकत है कि हमें रोक सके।
|