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प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :384
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8582

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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ


मुंशी–अजी आओ तो, इन बातों में क्या धरा है?

ईदू–आपही को मुबारक रहे, मुझे जाने दीजिए।

झिनकू–हम तो भगवान् चाही तो एके नियर न जाब; जूता कौन खाय?

यह कह कर दोनों अपने-अपने हाथ छोड़ा कर चले गये तब मुख्तार साहब ने बेचन का हाथ पकड़ा जो बरामदे से नीचे उतर रहा था, बोले–बेचन क्या तुम भी बेवफाई करोगे?

बेचन–मैंने तो बड़ी कसम खायी है। जब एक बार इसे गऊ-रक्त कह चुका तो फिर इसकी ओर ताक भी नहीं सकता। कितना ही गया बीता हूँ तो क्या गऊ-रक्त की लाज भी न रखूँगा। अब आप भी छोड़िए, कुछ दिन राम-राम कीजिए। बहुत दिन तो पीते हो गये।

यह कह कर वह भी सलाम करके चलता हुआ। अब अकेले रामबली रह गया। मुंशी जी ने उससे शोकातुर हो कर कहा–देखो रामबली, इन सभों की बेवफाई? यह लोग ऐसे ढुलमुल होंगे, मैं न जानता था। आओ आज हमीं तुम सही। दो सच्चे दोस्त ऐसे दरजनों कचलोहियों से अच्छे हैं। आओ बैठ जाओ।

रामबली–मैं तो हाजिर ही हूँ, लेकिन मैंने भी कसम खायी है कि कभी गाँठ के पैसे खर्च करके न पीऊँगा।

मुंशी–अजी जब तक मेरे दम में दम है, तुम जितना चाहो पीयो, गम क्या है।

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