कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
मेरा आज कितना अपमान हुआ! जब मैं गली में घुसा हूँ तो सैकड़ों ही आदमी मेरी ओर आग्नेय दृष्टि से ताक रहे थे। शराब लेकर लौटा हूँ, तब तो लोगों का वश चलता तो मेरी बोटियाँ नोच खाते। थानेदार न होता तो घर तक आना मुश्किल था। यह अपमान और लोकनिन्दा किस लिए। इसलिए कि घड़ी भर बैठ कर मुँह कड़वा करूँ और कलेजा जलाऊँ। कोई हँसी चुहल करने वाला तक नहीं।
लोग इसे कितनी त्याज्य-वस्तु समझते हैं; इसका अनुभव मुझे आज ही हुआ, नहीं तो एक संन्यासी के जरा से इशारे पर बरसों के लती पियक्कड़ यों मेरी अवहेलना न करते। बात यही है कि अंतःकरण से सभी इसे निषिद्ध समझते हैं। जब मेरे साथ के ग्वाले, एक्केवान, और कहार तक इसे त्याग करते हैं तो क्या मैं उनसे भी गया गुजरा हूँ?
इतना अपमान सह कर, जनता की निगाह में पतित हो कर, सारे शहर में बदनाम हो कर, नक्कू बन कर एक क्षण के लिए सिर में सरूर पैदा कर लिया तो क्या काम किया? कुवासना के लिए आत्मा को इतना नीचे गिराना क्या अच्छी बात है! यह चारों इस घड़ी मेरी निन्दा कर रहे होंगे, मुझे दुष्ट बना रहे होंगे, मुझे नीच समझ रहे होंगे। इन नीचों की दृष्टि में मैं नीचा हो गया। यह दुरवस्था नहीं सही जाती। आज इस वासना का अंत कर दूँगा, अपमान का अंत कर दूँगा।
एक क्षण में धड़ाके की आवाज हुई। अलगू चौंक कर उठा तो देखा कि मुंशी जी बरामदे में खड़े हैं और बोतल जमीन पर टूटी पड़ी है!
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