कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
मैं–मेरे ख्याल में तो आपका उसूल ठीक है।
खलील–ऐसा भूल कर भी न कहिएगा, वरना एक ही जगह दो बौड़म हो जायेंगे। लोगों को कारबार के सिवा न दीन से गरज है न दुनिया से। न मुल्क से, न क़ौम से। मैं अखबार मँगाता हूँ, स्मर्ना फंड में कुछ रुपये भेजना चाहता हूँ। खिलाफ़त-फंड को मदद करना भी अपना फर्ज समझता हूँ। सबसे बड़ा सितम है कि खिलाफत का रज़ाकार भी हूँ। क्यों साहब, जब क़ौम पर, मुल्क पर और दीन पर चारों तरफ से दुश्मनों का हमला हो रहा है तो क्या मेरा फर्ज नहीं है की जाति के फायदे को क़ौम पर कुर्बान कर दूँ? इसीलिए घर और बाहर मुझे बौड़म का लक़ब दिया गया है।
मैं–आप तो वह कर रहे हैं जिसकी इस वक्त क़ौम को जरूरत है।
खलील–मुझे खौफ है कि इस चौपट नगरी से आप बदनाम हो कर जायेंगे। जब मेरे हजारों भाई जेल में पड़े हुए हैं, उन्हें गजी का गाढ़ा तक पहनने को मयस्सर नहीं तो मेरी ग़ैरत गवारा नहीं करती कि मैं मीठे लुकमें उड़ाऊँ और चिकन के कुर्ते पहनूँ, जिनकी कलाइयों और मुड्ढों पर सीज़नकारी की गयी हो।
मैं–आप यह बहुत ही मुनासिब कहते हैं। अफ़सोस है कि और लोग आपका-सा त्याग करने के काबिल नहीं।
खलील–मैं इसे त्याग नहीं समझता, न दुनिया को दिखाने के लिए यह भेष बना के घूमता हूँ। मेरा जी ही लज्जत शौक़ से फिर गया है। थोड़े दिन होते हैं वालिद ने मुझे सिवान के मिल में निगरानी के लिए भेजा, मैंने वहाँ जा कर देखा तो इंजीनियर साहब के खानसामे, बैरे, मेहतर, धोबी, माली, चौकीदारी, सभी मजदूरों की जैल में लिखे हुए थे। काम साहब करते थे, मजदूरी कारखाने से पाते थे। साहब बहादुर खुद तो बेउसूल हैं, पर मजदूरों पर इतनी सख्ती थी कि अगर पाँच मिनट की देर हो जाय तो उनकी आधे दिन की मजदूरी कट जाती थी। मैंने साहब की मिजाज-पुरसी करनी चाही। मजदूरों के साथ रियायत करनी शुरू की। फिर क्या था? साहब बिगड़ गये, इस्तीफे की धमकी दी। घरवालों को उनके सब हालात मालूम हैं। पल्ले दरजे का हरामखोर आदमी है। लेकिन उसकी धमकी पाते ही सबके होश उड़ गये। मैं तार से वापस बुला लिया गया और घर पर मेरी खूब ले-दे हुई। पहले बौड़म होने में कुछ कोर-कसर थी, वह पूरी हो गयी। न जाने साहब से लोग क्यों इतना डरते हैं?
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