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प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :384
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8582

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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ


लेकिन मेहता महोदय जामे से बाहर हो रहे थे। राजेश्वरी की सहिष्णुतापूर्ण बातों से वे और जल उठे। दफ्तर में जा कर उसी क्रोध में पुत्र को पत्र लिखने लगे जिसका एक-एक शब्द छुरी और कटार से भी ज्यादा तीखा था।

उपर्युक्त घटना के दो सप्ताह पीछे मिस्टर मेहता ने विलायती डाक खोली तो बालकृष्ण का कोई पत्र न था। समझे मेरी चोटें काम कर गयीं, आ गया सीधे रास्ते पर, तभी तो उत्तर देने का साहस नहीं हुआ। ‘लंदन टाइम्स’ की चिट फाड़ी (इस पत्र को बड़े चाव से पढ़ा करते थे) और तार की खबरें देखने लगे। सहसा उनके मुँह से एक आह निकली। पत्र हाथ से छूट कर गिर पड़ा पहला समाचार था–

लंदन में भारतीय देशभक्तों का जमाव, ऑनरेबुल मिस्टर मेहता की वक्तृता पर असंतोष, मिस्टर बालकृष्ण मेहता का विरोध और आत्महत्या

गत शनिवार को बैक्सटन हॉल में भारतीय युवकों और नेताओं की एक बड़ी सभा हुई। सभापति मिस्टर तालिबजा ने कहा–हमको बहुत खोजने पर भी कौंसिल के किसी अंगरेज मेम्बर की वक्तृता में ऐसे मर्मभेदी, ऐसे कठोर शब्द नहीं मिलते। हमने अब तक किसी राजनीतिज्ञ के मुख से ऐसे भ्रांतिकारक, ऐसे निरंकुश विचार नहीं सुने। इस वक्तृता ने सिद्ध कर दिया कि भारत के उद्धार का कोई उपाय है तो वह स्वराज्य है जिसका आशय है–मन और वचन की पूर्ण स्वाधीनता। क्रमागत उन्नति (Evolion) पर से यदि हमारा एतबार अब तक नहीं उठा था तो अब उठ गया। हमारा रोग असाध्य हो गया है। यह अब चूर्णो और अवलेहों से अच्छा नहीं हो सकता। उससे निवृत्त होने के लिए हमें कायाकल्प की आवश्यकता है। ऊँचे राज्यपद हमें स्वाधीन नहीं बनाते, बल्कि हमारी आध्यात्मिक पराधीनता को और भी पुष्ट कर देते हैं। हमें विश्वास है कि ऑनरेबुल मिस्टर मेहता ने जिन विचारों का प्रतिपादन किया है उन्हें वे अंतःकरण से मिथ्या समझते हैं; लेकिन सम्मान-लालसा, श्रेय-प्रेम और पदानुराग ने उन्हें अपनी आत्मा का गला घोंटने पर बाध्य कर दिया है…

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