कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
एक दिन बड़े बाबू ने गरीब से अपनी मेज साफ करने को कहा, वह तुरंत मेज साफ करने लगा। दैवयोग से झाड़न का झटका लगा तो दावात उलट गयी और रोशनाई मेज पर फैल गयी। बड़े बाबू यह देखते ही जामे से बाहर हो गये। उसके दोनों कान पकड़ कर खूब ऐंठे भारतवर्ष की सभी प्रचलित भाषाओं में दुर्वचन चुन-चुन कर उसे सुनाने लगे। बेचारा गरीब आँखों में आँसू भरे चुपचाप मूर्तिवत सुनता था, मानों उसने कोई हत्या कर डाली हो। मुझे बड़े बाबू का जरा-सी बात पर इतना भयंकर रौद्ररूप धारण करना बुरा मालूम हुआ। यदि किसी दूसरे चपरासी ने उससे भी बड़ा अपराध किया होता तो भी उस पर इतना कठोर वज्र प्रहार न होता। मैंने अंग्रेजी में कहा–बाबू साहब, यह अन्याय कर रहे हैं, उसने जान-बूझ कर तो रोशनाई गिरायी नहीं। इसका इतना कड़ा दंड देना अनौचित्य की पराकाष्ठा है।
बाबू जी ने नम्रता से कहा–आप इसे जानते नहीं, यह बड़ा दुष्ट है।
‘‘मैं तो इसकी कोई दुष्टता नहीं देखता।’’
‘‘आप अभी इसे जाने नहीं। यह बड़ा पाजी है। इसके घर दो हलों की खेती होती है, हजारों का लेन-देन करता है, कई भैंस लगती हैं, इन बातों का इसे घमंड है।’’
‘‘घर की दशा ऐसी ही होती तो आपके यहाँ चपरासीगीरी क्यों करता?’’
बड़े बाबू ने गम्भीर भाव से कहा–विश्वास मानिए, बड़ा पोढ़ा आदमी है, और बला का मक्खीचूस है।
‘‘यदि ऐसा ही हो तो भी कोई अपराध नहीं है।’’
‘‘अभी आप यहाँ कुछ दिन और रहिए, तो आपको मालूम हो जायगा कि यह कितना कमीना आदमी है।’’
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