कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
उसने देखा, आकाश से मिला हुआ एक पर्वत-शिखर है। उसके ऊपर के वृक्ष छोटे-छोटे पौधों के सदृश दिखाई देते हैं। श्यामवर्ण घटाएँ छायी हुई हैं, बिजली इतने जोर से कड़कती है कि कान के परदे फटे जाते हैं, कभी यहाँ गिरती है कभी वहाँ। शिखर पर एक मनुष्य नंगे सिर बैठा हुआ है, उसकी आँखों का अश्रु-प्रवाह साफ दिख रहा है। मनोरमा दहल उठी, वह अमरनाथ थे। वह पर्वत शिखर से उतरना चाहते थे लेकिन मार्ग न मिलता था। भय से उनका मुख वर्ण-शून्य हो रहा था। अकस्मात् एक बार बिजली का भयंकर नाद सुनायी दिया, एक ज्वाला-सी दिखायी दी और अमरनाथ अदृश्य हो गये। मनोरमा ने फिर चीख मारी और जाग पड़ी। उसका हृदय बासों उछल रहा था, मस्तिष्क चक्कर खाता था। जागते ही उसकी आँखों में जल-प्रवाह होने लगा। वह उठ खड़ी हुई और कर जोड़ कर ईश्वर से विनय करने लगी–ईश्वर मुझे ऐसे बुरे-बुरे स्वप्न दिखाई दे रहे हैं, न जाने उन पर क्या बीत रही है, तुम दीनों के बन्धु हो, उन पर दया करो, मुझे धन और सम्पत्ति की इच्छा नहीं, मैं झोपड़ी में खुश रहूँगी, मैं केवल उनकी शुभकामना रखती हूँ। मेरी इतनी प्रार्थना स्वीकार करो।
वह फिर अपनी जगह पर बैठ गयी। अरुणोदय की मनोरम छटा और शीतल सुखद समीरण ने उसे आकर्षित कर लिया। उसे संतोष हुआ, किसी तरह रात कट गयी, अब तो नींद न आयेगी। पर्वतों से मनोरम दृश्य दिखाई देने लगे, कहीं पहाड़ियों के भेड़ों के गल्ले, कहीं पहाड़ियों के दामन में मृगों के झुँड कहीं कमल के फूलों से लहराते सागर। मनोरमा एक अर्धस्मृति की दशा में इन दृश्यों को देखती रही। लेकिन फिर न जाने कब उसकी अभागी आँखें झपक गयीं।
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