कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
दूसरे महाश्य–समस्त जाति के सिर कहिए।
हृदयनाथ–उद्धार का कोई उपाय सोचिए।
पहले महाशय–आपने समझाया नहीं?
हृदयनाथ–समझा के हार गया। कुछ सुनती ही नहीं।
तीसरे महाशय–पहले ही भूल हुई। उसे इस रास्ते पर उतरना ही नहीं चाहिए था।
पहले महाशय–उस पर पछताने से क्या होगा? सिर पर जो पड़ी है, उसका उपाय सोचना चाहिए। आपने समाचार-पत्रों में देखा होगा, कुछ लोगों की सलाह है कि विधवाओं से अध्यापकों का काम लेना चाहिए। यद्यपि मैं इसे भी बहुत अच्छा नहीं समझता, पर संन्यासिनी बनने से तो कहीं अच्छा है। लड़की अपनी आँखों के सामने तो रहेगी। अभिप्राय केवल यही है कि कोई ऐसा काम होना चाहिए जिसमें लड़की का मन लगे। किसी अवलम्ब के बिना मनुष्य को भटक जाने की शंका सदैव बनी रहती है। जिस घर में कोई नहीं रहता उसमें चमगादड़ बसेरा कर लेते हैं।
दूसरे महाशय–सलाह तो अच्छी है। मुहल्ले की दस-पाँच कन्याएँ पढ़ाने के लिए बुला ली जायें। उन्हें किताबें, गुड़ियाँ आदि इनाम मिलता रहे तो बड़े शौक से आयेंगी। लड़की का मन तो लग जायेगा।
हृदयनाथ–देखना चाहिए। भरसक समझाऊँगा।
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