कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
गौरा–यह जमीन ले कर एक स्थायी बाजार बनवा दो। स्वदेशी कपड़ों की दूकानें हों और किसी से किराया न लिया जाय।
रतन–बहुत खर्च पड़ेगा।
गौरा–मकान बेच दो, रुपये ही रुपये हो जायँगे।
रतन–और रहें पेड़ तले?
गौरा–नहीं, गाँववाले मकान में।
रतन–सोचूँगा।
गौरा–(जरा देर में) इलाके भर में खूब कपास की खेती कराओ, जो कपास बोये उसकी बेगार माफ कर दो।
रतन–हाँ तदबीर अच्छी है, दूनी उपज हो जायेगी।
गौरा–(कुछ देर सोचने के बाद) लकड़ी बिना दाम दो तो कैसा हो? जो चाहे, चरखे बनवाने के लिए काट ले जाय।
रतन–लूट मच जायगी।
गौरा–ऐसी बेईमानी कोई न करेगा।
जब उसने गाड़ी से उतर कर घर में कदम रखा तो चित्त शुभ कल्पनाओं से प्रफुल्लित हो रहा था। मानो कोई बछड़ा खूँटे से छूटकर किलोलें कर रहा हो।
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