लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)

प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :384
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8582

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

260 पाठक हैं

मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ


ललनसिंह–क्या किसी से ठन गयी।

शानसिंह–भली-भाँति।

ललनसिंह–किससे?

शानसिंह–इस समय जाइए, प्रातःकाल बतलाऊँगा।

दूजी भी ललनसिंह के साथ दरवाजे की चौखट तक आयी थी। भाइयों की आहट पाते ही ठिठक गयी और यह बातें सुनी। उसका माथा ठनका कि आज यह क्या मामला है। ललनसिंह का कुछ आदर-सत्कार नहीं हुआ। न हुक्का, न पान। क्या भाइयों के कानों में कुछ भनक तो नहीं पड़ी। किसी ने कुछ लगा तो नहीं दिया। यदि ऐसा हुआ तो कुशल नहीं।

इसी उधेड़बुन में पड़ी थी कि भाइयों ने भोजन परोसने की आज्ञा दी। जब वह भोजन करने बैठे तो दूजी ने अपनी निर्दोषिता और पवित्रता प्रकट करने के लिए एवं अपने भाइयों के दिल का भेद लेने के लिए कुछ कहना चाहा। त्रिया-चरित्र में अभी निपुण न थी। बोली–भैया ललनसिंह से कह दो, घर में न आया करे। आप घर में रहिए तो कोई बात नहीं, किंतु कभी-कभी आप नहीं रहते तो मुझे अत्यन्त लज्जा आती है। आज ही वह आपको पूछते हुए चले आये, अब मैं उनसे क्या कहूँ। आपको नहीं देखा तो लौट गये।

शानसिंह ने बहिन की तरफ तारे-भरे नेत्रों से देख कर कहा–अब वह घर में न आयेंगे।

गुमानसिंह बोले–हम इसी समय जा कर उन्हें समझा देंगे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book