कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
प्रातःकाल ग्रामवासियों ने आश्चर्यपूर्वक सुना कि ठाकुर ललनसिंह की किसी ने हत्या कर डाली। सारे गाँव के स्त्री-पुरुष, वृद्ध-युवा सहस्त्रों की संख्या में चौपाल के सामने जमा हो गये। स्त्रियाँ पनघटों को जाती हुई रुक गयीं। किसान हल-बैल लिये ज्यों के त्यों खड़े रह गये। किसी की समझ में न आता था कि यह हत्या किसने की। कैसा मिलनसार, हँसमुख सज्जन मनुष्य था! उनका कौन ऐसा शत्रु था! बेचारे ने किसी का इजाफा लगान या बेदखली की नालिश तक नहीं की। किसी को दो बात तक नहीं कही। दोनों भाइयों के नेत्रों से आँसू की धारा बहती थी। उनका घर उजड़ गया। सारी आशाओं पर तुषारपात हो गया। गुमानसिंह ने रोकर कहा–हम तीन भाई थे, अब दो ही रह गये! हमसे तो दाँत-काटी रोटी थी। साथ उठना, हँसी-दिल्लगी, भोजन-छाजन एक हो गया था। हत्यारे से इतना भी नहीं देखा गया। हाय।! अब हमको कौन सहारा देगा?
शानसिंह ने आँसू पोंछते हुए कहा–हम दोनों भाई कपास निराने जा रहे थे। ललनसिंह से कई दिन से भेंट नहीं हुई थी। सोचे की इधर से होते चलें, किंतु पिछवाड़े आते ही सेंध दिखायी पड़ी। हाथों के तोते उड़ गये। दरवाजों पर जाकर देखा तो चौकीदार-सिपाही सब सो रहे थे। उन्हें जगा कर ललनसिंह के किवाड़ खटखटाने लगे। परंतु बहुत बल करने पर भी किवाड़ अंदर से न खुले तो सेंध के रास्ते से झाँका। आह? कलेजे में तीर लग गया! संसार अँधेरा दिखायी दिया। प्यारे ललनसिंह का सिर धड़ से अलग था। रक्त की नदी बह रही थी। शोक! भैया सदा के लिए बिछुड़ गये।
मध्याह्न काल तक इसी प्रकार विलाप होता रहा। दरवाजे पर मेला लगा हुआ था। दूर-दूर से लोग इस दुर्घटना का समाचार पाकर इकट्टा होते जाते थे। संध्या होते-होते हल्के के दारोगा साहब भी चौकीदार और सिपाहियों का एक झुंड़ लिये आ पहुँचे। कढ़ाही चढ़ गयी। पूड़ियाँ छनने लगीं। दारोगा जी ने जाँच करनी शुरू की। घटनास्थल देखा। चौकीदारों का बयान हुआ। दोनों भाइयों के बयान लिखे। आस-पास के पासी और चमार पकड़े गये और उन पर मार पड़ने लगी। ललनसिंह की लाश लेकर थाने पर गये। हत्यारे का पता न चला। दूसरे दिन इन्स्पेक्टर-पुलिस का आगमन हुआ। उन्होंने भी गाँव का चक्कर लगाया, चमारों और पासियों की मरम्मत हुई, हलुआ मोहन, गोश्त-पूड़ी के स्वाद लेकर सायं को उन्होंने भी अपनी राह ली, कुछ पासियों पर जो कि कई बार डाके-चोरी में पकड़े जा चुके थे, संदेह हुआ। उनका चालान किया। मजिस्ट्रेट ने गवाही पुष्ट पाकर अपराधियों को सेशन सुपर्द किया और मुकदमें की पेशी होने लगी।
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