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प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :384
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8582

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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ


न्यायालय में एक स्त्री का आना बाजार में भानमती का आना है। अब तक अभियोग नीरस और अरुचिकर था। दूजी के आगमन ने उनमें प्राण डाल दिए। न्यायालय में एक भीड़ लग गयी। मुवक्किल और वकील, अमले और और दूकानदार, असावधानी की दशा में इधर-उधर दौड़ते हुए चले जाते थे। प्रत्येक पुरुष उसको देखने का इच्छुक था। सहस्त्रों नेत्र उसके मुखड़े की तरफ देखते थे और वह जन-समूह में शांति की मूर्ति बनी हुई निश्चल खड़ी थी।

इस घटना की प्रत्येक पुरुष अपनी-अपनी समझ के अनुसार आलोचना करता था। वृद्वजन कहते थे–बेहया है, ऐसी लड़की का सिर काट लेना चाहिए। भाइयों ने वही किया, जो मर्दों का काम था। इस निर्लज्ज को तो देखो कि अपना परदा ढाँकने के बदले उसका डंका बजा रही है। और भाइयों को भी डुबाये देती है। आँखों का पानी गिर गया है। ऐसी न होती तो यह दिन ही क्यों आता?

मगर नवयुवकों, स्वतंत्रता पर जान न्योछावर कर देनेवाले वकीलों और अमलों में उसके साहस ओर निर्भयता की प्रशंसा हो रही थी। उसकी समझ में जब यहाँ तक नौबत आ गयी थी तो भाइयों का धर्म था कि दोनों का ब्याह कर देते।

कई वृद्ध वकीलों की अपने नवयुवक मित्रों से कुछ छेड़छाड़ हो गयी। एक फैसनेबल बैरिस्टर साहब ने हँस कर कहा–‘मित्र’ और तो जो कुछ है सो है, यह स्त्री सहस्त्रों में एक है, रानी मालूम होती है? सर्वसाधारण ने इनका समर्थन किया। कुँवर विनयकृष्ण इस समय कचहरी से उठे थे। बैरिस्टर साहब की बात सुनी और घृणा ले मुँह फेर लिया। वह सोच रहे थे कि जिस स्त्री के क्रोध में इतनी ज्वाला है, क्या उसका प्रेम भी इसी प्रकार ज्वालापूर्ण होगा।

दूसरे दिन फिर दस बजे मुकदमा पेश हुआ। कमरे में तिल रखने की भी जगह न थी। दूजी कटघरे के पास सिर झुकाये खड़ी थी। दोनों भाई कांसटेबलों के बीच में चुपचाप खड़े थे। कुँवर विनयकृष्ण ने उन्हें सम्बोधित करके उच्च स्वर से कहा–ठाकुर शानसिंह, गुमानसिंह! तुम्हारी बहिन ने तुम्हारे सम्बन्ध में अदालत में कुछ बयान दिया है, उसका तुम्हारे पास क्या उत्तर है?

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