कहानी संग्रह >> प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह) प्रेम पचीसी (कहानी-संग्रह)प्रेमचन्द
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मुंशी प्रेमचन्द की पच्चीस प्रसिद्ध कहानियाँ
यह विचार कर काकी निराशामय संतोष के साथ लेट गयीं। ग्लानि से गला भर-भर आता था, परन्तु मेहमानों के भय से रोती न थीं।
सहसा उनके कानों में आवाज़ आई–‘‘काकी उठो, मैं पूड़ियाँ लायी हूँ’’ काकी ने लाडली की बोली पहचानी। चटपट उठ बैठीं। दोनों हाथों से लाडली को टटोला और उसे गोद में बैठा लिया। लाडली ने पूड़ियाँ निकाल कर दीं।
काकी ने पूछा–क्या तुम्हारी अम्मा ने दी हैं?
लाडली ने कहा–नहीं, यह मेरे हिस्से की हैं।
काकी पूड़ियों पर टूट पडीं। पाँच मिनट में पिटारी खाली हो गयी। लाडली ने पूछा–काकी पेट भर गया।
जैसे थोड़ी-सी वर्षा ठंडक के स्थान पर और भी गर्मी पैदा कर देती है उस भाँति इन थोड़ी पूड़ियों ने काकी की क्षुधा और इच्छा को और उत्तेजित कर दिया था। बोलीं–नहीं बेटी, जा कर अम्माँ से और मांग लाओ।
लाडली ने कहा–अम्माँ सोती हैं, जगाऊँगी तो मारेंगी।
काकी ने पिटारी को फिर टटोला। उसमें कुछ खुर्चन गिरे थी। उन्हें निकाल कर वे खा गयीं। बार-बार होंठ चाटती थीं, चटखारें भरती थीं।
हृदय मसोस रहा था कि और पूड़ियाँ कैसे पाऊँ। संतोष-सेतु जब टूट जाता है तब इच्छा का बहाव अपरिमित हो जाता है। मतवालों को मद का स्मरण करना उन्हें मदांध बनाता है। काकी का अधीर मन इच्छाओं के प्रबल प्रवाह में बह गया। उचित और अनुचित का विचार जाता रहा। वे कुछ देर तक उस इच्छा को रोकती रहीं। सहसा लाडली से बोलीं–मेरा हाथ पकड़ कर वहाँ ले चलो, जहाँ मेहमानों ने बैठ कर भोजन किया है।
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