लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

317 पाठक हैं

नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


सेठजी अब तक सोठ बने बैठे थे। ड्रामा समाप्त हो गया; पर उनके मुखारबिंद पर उनके मनोविकार का लेशमात्र भी आभास न था। जड़ भरत की तरह बैठे हुए थे, न मुसकराहट थी, न कुतूहल, न हर्ष कुछ विनोद-बिहारी ने मुआमले की बात पूछी–तो इस ड्रामा के बारे में श्रीमान की क्या राय है?

सेठजी ने उसी विरक्त भाव से उत्तर दिया–मैं इसके विषय में कल निवेदन करूँगा। कल यहीं भोजन भी कीजिएगा। आप लोगों के लायक भोजन तो क्या होगा, उसे केवल विदुर का साग समझकर स्वीकार कीजिए।

पंच पांडव बाहर निकले, तो मारे खुशी के सबकी बाछें खिली जाती थीं।

विनोद–पाँच हजार की थैली है। नाक-कान बद सकता हूँ।

अमरनाथ–पाँच हजार है कि दस यह तो नहीं कह सकता; पर रंग खूब जम गया।

रसिक–मेरा अनुमान तो चार हजार का है।

मस्तराम–और मेरा विश्वास है कि दस हजार से कम वह करेगा ही नहीं। मैं तो सेठ के चेहरे की तरफ ध्यान से देख रहा था। आज ही कह देता; पर डरता था, कहीं ये लोग अस्वीकार न कर दें। ओठों पर तो हँसी न थी; पर मगन हो रहा था।

गुरुप्रसाद–मैंने पढ़ा भी तो जी तोड़कर।

विनोद–ऐसा जान पड़ता था, तुम्हारी वाणी पर सरस्वती बैठ गई हैं। सभी की आँखें खुल गईं।

रसिक–मुझे उसकी चुप्पी से जरा संदेह होता है।

अमर–आपके संदेह का क्या कहना! आपको तो ईश्वर पर भी संदेह है।

मस्त–ड्रामेटिस्ट भी बहुत खुश हो रहा था। दस-बारह हजार का वारा-न्यारा है। भई, आज इस खुशी में एक दावत होनी चाहिए।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book