कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह ) प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ
मैंने दौड़कर उसे कजाकी की गोद से ले लिया। वह हिरन का बच्चा था!
आह! मेरी उस खुशी का कौन अनुमान करेगा? तब से कठिन परीक्षाएँ पास कीं, अच्छा पद भी पाया; वह खुशी फिर न हासिल हुई। मैं उसे गोद में लिये, उसके कोमल स्पर्श का आनंद उठाता घर की ओर दौड़ा। कजाकी को आने में क्यों इतनी देर हुई, इसका खयाल ही न रहा।
मैंने पूछा–यह कहाँ मिला कजाकी?
कजाकी–भैया, यहाँ से थोड़ी दूर पर एक जंगल है। उसमे बहुत से हिरन हैं। मेरा बहुत जी चाहता था कोई बच्चा मिल जाय तो तुम्हें दूँ। आज यह बच्चा हिरनों के झुंड के साथ दिखलाई दिया! मैं झुंड की ओर दौड़ा, तो सब-के-सब भागे। यह बच्चा भी भागा। लेकिन मैंने पीछा न छोड़ा। और हिरन तो बहुत दूर निकल गए, यही पीछे रह गया। मैंने इसे पक़ड़ लिया। इसी से इतनी देर हुई।
यों बाते करते हम दोनों डाकखाने पहुँचे।
बाबूजी ने मुझे न देखा, हिरन के बच्चे को भी न देखा, कजाकी पर ही उसकी निगाह पड़ी। बिगड़कर बोले–आज इतनी देर कहाँ लगाई? अब थैला लेकर आया है, उसे क्या करूँ? डाक तो चली गई। बता तूने इतनी देर कहाँ लगाई?
कजाकी के मुँह से आवाज न निकली।
बाबूजी ने कहा–तुझे शायद अब नौकरी नहीं करनी है। नीच है न, पेट भरा तो मोटा हो गया। जब भूखों मरने लगेगा तो आँखें खुलेंगी।
कजाकी चुपचाप खड़ा रहा।
बाबूजी का क्रोध और बढ़ा। बोले–अच्छा, थैला दे, और अपने घर की राह ले। सुअर, अब डाक लेके आया है! तेरा क्या बिगड़ेगा! जहाँ चाहेगा, मजदूरी कर लेगा। माथे तो मेरे जाएगी–जवाब तो मुझसे तलब होगा।
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