लोगों की राय

कहानी संग्रह >> प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेम पीयूष ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :225
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8584

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

317 पाठक हैं

नव जीवन पत्रिका में छपने के लिए लिखी गई कहानियाँ


वह बुरी सायत थी, जब मैंने सम्पादकीय क्षेत्र में पदार्पण किया, नहीं तो आज इस धर्मसंकट में क्यों पड़ता! कितना घोर विश्वासघात होगा! विश्वास मैत्री का मुख्य अंग है। नईम ने मुझे अपना विश्वासपात्र बनाया है, मुझे अपना विश्वासपात्र बनाया है, मुझसे कभी परदा नहीं रखा। उसके उन गुप्त रहस्यों को प्रकाश में लाना उसके प्रति कितना घोर अन्याय होगा! नहीं, मैं मैत्री को कलंकित न करूँगा। उसकी निर्मल कीर्ति पर धब्बा न लगाऊँगा, मैत्री पर वज्राघात न करूँगा। ईश्वर वह दिन न लाए कि मेरे हाथों नईम का अहित हो। मुझे पूर्ण विश्वास है कि यदि मुझ पर कोई संकट पड़े, तो नईम मेरे लिए प्राण तक दे देने को तैयार हो जाएगा! उसी मित्र को मैं संसार के सामने अपमानित करूँ, उसकी गर्दन पर कुठार चलाऊँ! भगवान, मुझे वह दिन न दिखाना।

लेकिन जातीय कर्तव्य का पक्ष भी निरस्त्र न था। पत्र का सम्पादक परम्परागत नियमों के अनुसार जाति का सेवक है। वह जो कुछ देखता है, जाति की विराट् दृष्टि से देखता है। वह जो कुछ विचार करता है, उस पर भी जातीयता की छाप लगी होती है। नित्य जाति के विस्तृत विचार-क्षेत्र में विचरण करते रहने से व्यक्ति का महत्व उसकी दृष्टि में अत्यंत संकीण हो जाता है, वह व्यक्ति को क्षुद्र, तुच्छ, नग्णय समझने लगता है। व्यक्ति की जाति पर बलि देना उसकी नीति का प्रथम अंग है। यहाँ तक की वह बहुधा अपने स्वार्थ को भी जाति पर वार देता है। उसके जीवन का लक्ष्य महान और आदर्श पवित्र होता है। वह उन महान आत्माओं का अनुगामी होता है, जिन्होंने राष्ट्रों का निर्माण किया है। जिनकी कीर्ति अमर हो गई है, जो दलित राष्ट्रों की उद्धरक हो गई है। वह यथाशक्ति कोई काम ऐसा नहीं कर सकता, जिससे पूर्वजों की उज्ज्वल विरुदावली में कालिमा लगने का भय हो। कैलास राजनीतिक क्षेत्र में बहुत कुछ यश और गौरव प्राप्त कर चुका था।

उसकी सम्पति आदर की दृष्टि से देखी जाती थी। उसके निर्भीक विचारों ने, उसको निष्पक्ष टीकाओं ने उसे सम्पादक-मंडली का प्रमुख नेता बना दिया था। अवएव इस अवसर पर मैत्री का निर्वाह उसकी नीति और आदर्श ही के विरूद्ध नहीं, उसके मनोगत भावों के भी विरुद्ध था। इससे उसका अपमान था आत्मपतन था, भीरूता थी। यह कर्तव्य पथ से विमुख होना और राजनीतिक क्षेत्र से सदैव के लिए बहिष्कृत हो जाना था। एक व्यक्ति की, चाहे वह मेरा मेरा कितना ही आत्मीय क्यों न हो, राष्ट्र के सामने क्या हस्ती है!

नईम के बनने या बिगड़ने से राष्ट्र पर कोई असर न पड़ेगा। लेकिन शासन की निरंकुशता और अत्याचार पर परदा डालना राष्ट्र के लिए भंयकर सिद्ध हो सकता है। उसे इसकी परवाह न थी कि मेरी आलोचना का प्रत्यक्ष कोई असर होगा की नहीं। सम्पादक की दृष्टि में अपनी सम्पति सिंह नाद के सामने प्रतीत होती है। वह कदाचित समझता है कि मेरी लेखनी शासन को कम्पायमान कर देगी, विश्व को हिला देगी। शायद सारा संसार मेरी कलम की सरसराहट से थर्रा उठेगा, मेरे विचार प्रकट होते ही युगांतर उपस्थिति कर देंगे। नईम मेरा मित्र है, किन्तु राष्ट्र मेरा इष्ट है। मित्र के पद की रक्षा के लिए क्या अपने इष्ट पर प्राणघातक आघात करूँ?

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book