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प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :286
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8588

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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है


इस पत्र का उत्तर आया–अच्छी बात है, जाइए, पर यहाँ से होते हुए जाइएगा। यहाँ से भी कोई आपके साथ चला जायगा।

सुरेशसिंह को इन शब्दों में आशा की झलक दिखाई दी। उसी दिन प्रस्थान कर दिया। किसी को साथ नहीं लिया।

ससुराल में किसी ने उनका प्रेममय स्वागत नहीं किया। सभी के मुँह फूले हुए थे। ससुरजी ने तो उन्हें पति-धर्म पर एक लम्बा उपदेश दिया।

रात को जब वह भोजन करके लेटे, तो छोटी साली आकर बैठ गई और मुस्कराकर बोली–जीजाजी, कोई सुंदरी अपने रूपहीन पुरुष को छोड़ दे, उसका अपमान करे, तो आप उसे क्या कहेंगे?

सुरेश–(गम्भीर स्वर से) कुटिला!

साली–और ऐसे पुरुष को, जो अपनी रूपहीन स्त्री को त्याग दे?

सुरेश–पशु!

साली–और जो पुरुष विद्वान हो?

सुरेश–पिशाच!

साली–(हँसकर) तो मैं भागती हूँ। मुझे आपसे डर लगता है।

सुरेश–पिशाचों का प्रायश्चित तो स्वीकार हो जाता है।

साली–शर्त यह है कि प्रायश्चित सच्चा हो।

सुरेश–यह तो वह अन्तर्यामी ही जान सकते हैं।

साली–सच्चा होगा, तो उसका फल भी अवश्य मिलेगा। मगर दीदी को लेकर इधर ही से लौटिएगा।

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