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कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :286
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8588

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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है


टामी को अब कोई चिंता थी, तो यह कि इस देश में मेरा कोई मुद्दई न उठ खड़ा हो। वह नित्य सजग और सशस्त्र रहने लगा। ज्यों-ज्यों दिन गुजरते थे, और उसके सुख-भोग का चसका बढ़ता जाता था, त्यों-त्यों उसकी चिन्ता बढ़ती थी। वह अब बहुधा रात को चौंक पड़ता, और किसी अज्ञात शत्रु के पीछे दौड़ता। अक्सर ‘अंधा कूकुर बतासे भूके’ वाली लोकोक्ति को चरितार्थ करता; वन के पशुओं से कहता–ईश्वर न करे, तुम किसी दूसरे शासक के पंजे में फँस जाओ। वह तुम्हें पीस डालेगा। मैं तुम्हारा हितैषी हूँ। सदैव तुम्हारी शुभ कामना में मग्न रहता हूँ। किसी दूसरे से यह आशा मत रखो। पशु एक स्वर से कहते–जब तक हम जिएँगे, आपके ही अधीन रहेंगे!

आखिरकार यह हुआ कि टामी को क्षण-भर भी शांति से बैठना दुर्लभ हो गया। वह रात-रात और दिन-दिन भर नदी के किनारे इधर से उधर चक्कर लगाया करता। दौड़ते-दौड़ते हाँफने लगता, बेदम हो जाता; मगर चित्त को शान्ति न मिलती। कहीं कोई शत्रु न घुस आए।

लेकिन क्वार का महीना आया, तो टामी का चित्त एक बार फिर अपने पुराने सहचरों से मिलने के लिए लालायित होने लगा। वह अपने मन को किसी भाँति रोक न सका। उसे वह दिन याद आया; जब वह दो-चार मित्रों के साथ किसी प्रेमिका के पीछे गली-गली और कूचे-कूचे में चक्कर लगाता था। दो-चार दिन उसने सब्र किया, पर अंत में आवेग इतना प्रबल हुआ कि वह तकदीर ठोककर खड़ा हो गया। उसे अब अपने तेज और बल पर अभिमान भी था। दो-चार को तो वह अकेले मजा चखा सकता था।

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