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प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :286
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8588

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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है


सत्यप्रकाश–मैं ज्ञानू से क्यों जलने लगा? यहाँ हम और वह दो हैं, बाहर हम और वह एक समझे जाते हैं। मैं यह नहीं कहना चाहता कि मेरे पास कुछ नहीं है।

देवप्रकाश–क्यों, यह कहते शर्म आती है?

सत्यप्रकाश–जी हाँ, आपकी बदनामी होगी।

देवप्रकाश–अच्छा, तो आप मेरी मान रक्षा करते हैं! यह क्यों नहीं कहते कि पढ़ना अब मंजूर नहीं। मेरे पास इतना रुपया नहीं कि तुम्हें एक-एक क्लास में तीन-तीन साल पढ़ाऊँ, ऊपर से तुम्हारे खर्च के लिए भी प्रतिमाह कुछ दूँ। ज्ञानू तुमसे कितना छोटा है, लेकिन तुमसे एक ही दर्जा नीचे है। तुम इस साल जरूर ही फेल होओगे; वह जरूर ही पास होगा। अगले साल तुम्हारे साथ ही जावेगा। तब तो तुम्हारे मुँह में कालिख लगेगी न?

सत्यप्रकाश–विद्या मेरे भाग्य ही में नहीं है।

देवप्रकाश–तुम्हारे भाग्य में क्या है?

सत्यप्रकाश–भीख माँगना।

देवप्रकाश–तो फिर भीख ही माँगो। मेरे घर से निकल जाओ।

देवप्रिया भी आ गई। बोली–शरमाता तो नहीं, और बातों का जवाब देता है।

सत्यप्रकाश–जिनके भाग्य में भीख माँगना होता है, वे बचपन में ही अनाथ हो जाते हैं।

देवप्रिया–ये जली-कटी बातें अब मुझसे न सही जायँगी। मैं खून का घूँट पी-पीकर रह जाती हूँ।

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