कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह ) प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है
रात-दिन ये ही बातें सोचते-सोचते देवप्रिया की दशा उन्मादिनी की-सी हो गई। आप-ही-आप सत्यप्रकाश को कोसने लगती–वही मेरे प्राणों का घातक है। तल्लीनता उन्माद का प्रधान गुण है। तल्लीनता अत्यंत रचनाशील है। वह आकाश में देवताओं के विमान उड़ाने लगती है। अगर भोजन में नमक तेज हो गया, तो यह शत्रु ने कोई रोड़ा रख दिया होगा। देवप्रिया को अब कभी-कभी धोखा हो जाता कि सत्यप्रकाश घर में आ गया है, वह मुझे मारना चाहता है, ज्ञानप्रकाश को विष खिलाए देता है। एक दिन उसने सत्यप्रकाश के नाम एक पत्र लिखा, और उसमें जितना कोसते बना, कोसा–तू मेरे प्राणों का बैरी है, मेरे कुल का घातक है, हत्यारा है। वह कौन दिन आएगा कि तेरी मिट्टी उठेगी। तूने मेरे लड़के पर वंशीकरण मन्त्र चला दिया है। दूसरे दिन फिर ऐसा ही पत्र लिखा, यहाँ तक कि वह उसका नित्य कर्म हो गया। जब तक एक चिठ्ठी में सत्यप्रकाश को गालियाँ न दे लेती, उसे चैन ही न आता! इन पत्रों को वह कहारिन के हाथ डाक-घर भिजवा दिया करती थी।
ज्ञानप्रकाश का अध्यापक होना सत्यप्रकाश को घातक हो गया। परदेश में उसे यही संतोष था कि मैं संसार में निराधार नहीं हूँ। अब वह अवलम्बन भी जाता रहा। ज्ञानप्रकाश ने जोर देकर लिखा–अब आप मेरे वास्ते कष्ट न उठावें, मुझे गुजर करने के लिए काफी से ज्यादा मिलने लगा है।
यद्यपि सत्यप्रकाश की दूकान खूब चलती थी, लेकिन कलकत्ते जैसे शहर में एक छोटे-से दूकानदार का जीवन बहुत सुखी नहीं होता। ६०-७० रु. की मासिक आमदनी होती ही क्या है? अब तक वह जो कुछ बचाता था, वह वास्तव में बचत न थी, बल्कि त्याग था। एक वक्त रूखा-सूखा खा कर, एक तंग आर्द्र कोठरी में रहकर २५-३० रु. बच रहते थे। अब दोनों वक्त भोजन मिलने लगा। मगर थोड़े ही दिनों में उसके खर्च में औषधियों की एक मद बढ़ गई। फिर वही पहले की-सी दशा हो गई। बरसों तक शुद्ध वायु, प्रकाश और पुष्टिकर भोजन से वंचित रहकर अच्छे से अच्छा स्वास्थ्य भी नष्ट हो सकता है। सत्यप्रकाश को अरुचि, मंदाग्नि आदि रोगों ने आ घेरा। कभी-कभी ज्वर भी आ जाता।
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