कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह ) प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )प्रेमचन्द
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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है
ज्ञानप्रकाश–जी नहीं। मालूम नहीं, क्या खा लिया। इधर उन्हें उन्माद-सा हो गया था। पिताजी ने कुछ कटु वचन कहे थे, शायद इसी पर कुछ खा लिया।
सत्यप्रकाश–पिताजी तो कुशल से हैं?
ज्ञानप्रकाश–हाँ, अभी मरे नहीं हैं।
सत्यप्रकाश–अरे! क्या बहुत बीमार हैं?
ज्ञानप्रकाश–माता ने विष खा लिया, तो उनका मुँह खोलकर दवा पिला रहे थे। माताजी ने जोर से उनकी उँगलियाँ काट लीं। वही विष उनके शरीर में पहुँच गया। तब से सारा शरीर सूज आया है! अस्पताल में पड़े हुए हैं, किसी को देखते हैं, तो काटने दौड़ते हैं। बचने की आशा नहीं है।
सत्यप्रकाश–तब तो घर ही चौपट हो गया?
ज्ञानप्रकाश–ऐसे घर को अब से बहुत पहले चौपट हो जाना चाहिए था।
तीसरे दिन दोनों भाई प्रातःकाल कलकत्ते से बिदा होकर चल दिए।
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