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कहानी संग्रह >> प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेम प्रसून ( कहानी-संग्रह )

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :286
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8588

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इन कहानियों में आदर्श को यथार्थ से मिलाने की चेष्टा की गई है


मंत्री–आप नाहक इतना शक करते हैं।

नौ बजे सेठ चंदूमल अपनी दूकान पर आये, तो वहाँ कोई भी वालंटियर न था। मुख पर मुस्कराहट झलक आयी। मुनीम से बोले–कौड़ी चित्त पड़ी।

मुनीम–मालूम तो होता है। एक महाशय भी नहीं आये।

चंदूमल–न आये, और न आएँगे। बाजी अपने हाथ रही। कैसा दाँव खेला–चारों खाने चित्त।

मुनीम–पुलिस वाले तो दुश्मन हो गए।

चंदूमल–आप भी कैसी बातें करते हैं? इन्हें दोस्त बनाते कितनी देर लगती है। कहिए, अभी बुलाकर जूतियाँ सीधी करवाऊँ। टके के गुलाम हैं, न किसी के दोस्त, न किसी के दुश्मन। सच कहिए, कैसा चकमा दिया?

मुनीम–बस, यही जी चाहता है कि आपके हाथ चूम लें। साँप भी मरा और लाठी भी न टूटी। मगर काँग्रेसवाले भी टोह में होंगे।

चंदूमल–तो मैं भी तो मौजूद हूँ। वह डाल-डाल चलेंगे, तो मैं पात-पात चलूँगा। विलायती कपड़े की गाँठे निकलवाइए और व्यापारियों को देना शुरू कीजिए। एक अठवारे में बेड़ा पार है।

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