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रंगभूमि (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :1153
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8600

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नौकरशाही तथा पूँजीवाद के साथ जनसंघर्ष का ताण्डव; सत्य, निष्ठा और अहिंसा के प्रति आग्रह, ग्रामीण जीवन में उपस्थित मद्यपान तथा स्त्री दुर्दशा का भयावह चित्र यहाँ अंकित है


ताहिर–बहुत खूब, उसे कहूंगा।

जान सेवक–कहूंगा नहीं, उसे भेज दीजिएगा। अगर आपसे इतना भी न हो सका, तो मैं समझूंगा, आपको सौदा पटाने का जरा भी ज्ञान नहीं।

मिसेज सेवक–(अंगरेजी में) तुम्हें इस जगह पर कोई अनुभवी आदमी रखना चाहिए था।

जान सेवक–(अंगरेजी में) नहीं, मैं अनुभवी आदमियों से डरता हूं। वे अपने अनुभव से अपना फायदा सोचते हैं, तुम्हें फायदा नहीं पहुंचाते। मैं ऐसे आदमियों से कोसों दूर रहता हूं।

ये बातें करते हुए तीनों आदमी फिटन के पास गए। पीछे-पीछे ताहिर अली भी थे। यहां सेफ़िया खड़ी सूरदास से बातें कर रही थी। प्रभु सेवक को देखते ही बोली, ‘प्रभु, यह अंधा तो कोई ज्ञानी पुरुष जान पड़ता है, पूरा फिलासफर है।’

मिसेज सेवक–तू जहां जाती है, वहीं तुझे कोई-न-कोई ज्ञानी आदमी मिल जाता है। क्यों रे अंधे, तू भीख क्यों मांगता है? कोई काम क्यों नहीं करता?

सोफ़िया–(अंगरेजी में) मामा, यह अंधा निरा गंवार है।

सूरदास को सोफ़िया से सम्मान पाने के बाद ये अपमानपूर्ण शब्द बहुत बुरे मालूम हुए। अपने आदर करने वाले के सामने अपना अपमान कई गुना असह्य हो जाता है। सिर उठाकर बोला–भगवान ने जन्म दिया है, भगवान की चाकरी करता हूं। किसी दूसरे की ताबेदारी नहीं हो सकती।

मिसेज सेवक–तेरे भगवान ने तुझे अंधा क्यों बना दिया? इसलिए कि तू भीख मांगता फिरे? तेरा भगवान बड़ा अन्यायी है।

सोफ़िया–(अंगरेजी में) मामा, आप इसका अनादर क्यों कर रही हैं कि मुझे शर्म आती है।

सूरदास–भगवान अन्यायी नहीं है, मेरे पूर्व-जन्म की कमाई ही ऐसी थी। जैसे कर्म किए हैं, वैसे फल भोग रहा हूं। यह सब भगवान की लीला है। वह बड़ा खिलाड़ी है। घरौंदे बनाता-बिगाड़ता रहता है। उसे किसी से बैर नहीं। वह क्यों किसी पर अन्याय करने लगा?

सोफ़िया–मैं अगर अंधी होती, तो खुदा को कभी माफ न करती।

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