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			 सदाबहार >> रूठी रानी (उपन्यास) रूठी रानी (उपन्यास)प्रेमचन्द
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रूठी रानी’ एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचंद ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है
रूठी रानी एक ऐतिहासिक उपन्यास है, जिसमें राजाओं की वीरता और देश भक्ति को कलम के आदर्श सिपाही प्रेमचन्द ने जीवन्त रूप में प्रस्तुत किया है। उपन्यास में राजाओं की पारस्परिक फूट और ईर्ष्या के ऐसे सजीव चित्र प्रस्तुत किये गये हैं कि पाठक दंग रह जाता है। ‘रूठी रानी’ में बहुविवाह के कुपरिणामों, राजदरबार के षड़्यंत्रों और उनसे होने वाले शक्तिह्रास के साथ-साथ राजपूती सामन्ती व्यवस्था के अन्तर्गत स्त्री की हीन दशा के सूक्ष्म चित्र हैं। 
 दूसरी कृति प्रेमा में प्रेमचन्द ने देश की स्वतन्त्रता के प्रेमियों का आह्वान करते हुए कहा है कि साहस एवं शौर्य के साथ एकता और संगठन भी आवश्यक हैं।
रूठी रानी
शादी की तैयारी
उमादे जैसलमेर के रावल लोनकरन की बेटी थी जो सन् १५८६ में राजगद्दी पर सुशोभित था। बेटी के पैदा होने से पहले तो दिल जरा टूटा मगर जब उसके सौन्दर्य की खबर आयी तो आंसू पुंछ गए। थोड़े ही दिनों में उस लड़की के सौन्दर्य की धूम राजपूताने में मच गयी। सखियां सोचती थीं कि देखें यह युवती किस भाग्यवान को मिलती है। वे उसके आगे देश देश के राजों-महाराजों के गुणों का बखान किया करतीं और उसके जी की थाह लेतीं लेकिन उमादे अपने सौन्दर्य के गर्व से किसी को खयाल में न लाती थी। उसे सिर्फ अपने बाहरी गुणों पर गर्व न था, अपने दिल की मजबूती, हौसले की बुलन्दी और उदारता में भी वह बेजोड़ थी। उसकी आदतें सारी दुनिया से निराली थीं। छुई-मुई की तरह जहाँ किसी ने उंगली दिखायी और यह कुम्हलायी। मां कहती– बेटी, पराये घर जाना है, तुम्हारा निबाह क्योंकर होगा? बाप कहता– बेटा, छोटी-छोटी बातों पर बुरा नहीं मानना चाहिए। पर वह अपनी धुन में किसी की न सुनती थी। सबका जवाब उसके पास खामोशी थी कोई कितना ही भूंके, जब वह किसी बात पर अड़ जाती तो अड़ी ही रहती थी। 
आखिर लड़की शादी करने के काबिल हुई। रानी ने रावल से कहा– ‘‘बेखबर कैसे बैठे हो, लड़की सयानी हुई, उसके लिए वर ढूंढ़ों, बेटी के हाथों में मेंहदी रचाओ।’’
रावल ने जवाब दिया– ‘‘जल्दी क्या है, राजा लोगों में चर्चा हो रही है, आजकल में शादी के पैगाम आया चाहते हैं। अगर मैं अपनी तरफ से किसी के पास पैगाम भेजूंगा तो उसका मिजाज आसमान पर चढ़ जाएगा।’’
मारवाड़ के बहादुर राजा मालदेव ने भी उमादे के संसारदाहक सौन्दर्य की ख्याति सुनी और बिना देखे ही उसका प्रेमी हो गया। उसने रावल से कहला भेजा कि मुझे अपना बेटा बना लीजिए, हमारे और आपके बीच पुराने जमाने से रिश्ते होते चले आए हैं। आज कोई नयी बात नहीं है। 
रावल ने यह पैगाम पाकर दिल में कहा वाह– मेरा सारा राज तो तहस-नहस कर डाला अब शादी का पैगाम देते हैं ! मगर फिर सोचा कि शेर पिंजरे में ही फंसता है, ऐसा मौका फिर न मिलेगा। हरगिज न चूकना चाहिए। यह सोचकर रावल ने सोने-चांदी के नारियल भेजे। राव मालदेव जी बारात सजाकर जैसलमेर ब्याह करने आए। चेता और कोंपा जो उसके सूरमा सरदार थे, उसके दाएं-बाएं चलते थे। 
			
						
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