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सामाजिक कहानियाँ >> सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)

सप्त सुमन (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :164
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8626

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मुंशी प्रेमचन्द की सात प्रसिद्ध सामाजिक कहानियाँ


गाँव के आदमियों पर विश्वेश्वर का दबाव था। सब लोग उनसे रुपये– पैसे उधार ले जाते थे। मामले– मुकदमें में उनसे सलाह लेते। सबने अदालत में बयान दिया कि हम लोगों ने कभी तपेश्वरी को नहीं देखा!

सिद्धेश्वर के कोई लड़की ही न थी। जागेश्वर ने बड़े– बड़े वकीलों से पैरवी करायी, बहुत धन खर्च किया, लेकिन मुंसिफ ने उनके विरुद्ध फैसला सुनाया। बेचारा हताश हो गया। विश्वेश्वर की अदालत में सबसे जान– पहचान थी। जागेश्वर को जिस काम के लिए मुट्ठियों रुपये खर्च करने पड़ते थे, वह विश्वेश्वर मुरौवत में करा लेता।

जागेश्वर ने अपील करने का निश्चय किया। रुपये न थे, गाड़ी– बैल बेच डाले। अपील हुई। महीनों मुकदमा चला। बेचारा सुबह से शाम कचहरी के अमलों और वकीलों की खुशामद किया करता, रुपये भी उठ गये, महाजनों से ऋण लिया। बाद में अबकी उसकी डिग्री हो गयी। पाँच सौ का बोझ सिर पर हो गया था, पर अब जीत ने आँसू पोंछ दिये। विश्वेश्वर ने हाईकोर्ट में अपील की। जागेश्वर को अब कहीं से रुपये न मिले। विवश होकर अपने हिस्से की ज़मीन रेहन रखी। फिर घर बेचने की नौबत आयी। यहाँ तक की स्त्रियों के गहने भी बिक गये। अन्त में हाईकोर्ट से भी उसकी जीत हो गयी। आनंदोत्सव में बची– खुची पूँजी भी निकल गयी। एक हज़ार पर पानी फिर गया। हाँ, संतोष यही था कि ये पाँचों बीघे मिल गए। तपेश्वरी क्या इतनी निर्दय हो जाएगी कि थाली मेरे सामने से खींच लेगी।

लेकिन खेतों पर अपना नाम चढ़ते ही तपेश्वरी की नीयत बदली। उसने एक दिन गाँव में आकर पूछ– ताछ की तो मालूम हुआ कि पाँचों बीघे १॰॰) में उठ सकते हैं। लगान केवल २५) था, ७५) साल का नफा था। इस रकम ने उसे विचलित कर दिया। उसने असामियों को बुलाकर उनके साथ बंदोबस्त कर दिया। जागेश्वरराय हाथ मलता रह गया। आखिर उससे न रहा गया। बोला– फूफी जी, आपने ज़मीन तो दूसरों को दे दी, अब मैं कहाँ जाऊँ।

तपेश्वरी– बेटा, पहले अपने घर में दिया जला कर तब मस्जिद में जलाते हैं। इतनी जगह मिल गयी, तो मैके से नाता हो गया, नहीं तो कौन पूछता।

जागे.– मैं जो उजड़ गया!

तपेश्वरी– जिस लगान पर लोग ले रहे हैं, उससे दो– चार रुपये कम करके तुम्हीं क्यों नहीं ले लेते?

तपेश्वरी तो दो– चार दिन में बिदा हो गयी। रामेश्वरराय पर वज्रपात सा हो गया। बुढ़ापे में मजदूरी करनी पड़ी।

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