उपन्यास >> सेवासदन (उपन्यास) सेवासदन (उपन्यास)प्रेमचन्द
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यह उपन्यास घनघोर दानवता के बीच कहीं मानवता का अनुसंधान करता है
कृष्णचन्द्र ने पीछे लौटने के लिए कदम उठाया। माया ने अपनी विलक्षण शक्ति का चमत्कार दिखा दिया। वास्तव में वह संसार-प्रेम नहीं था, अदृश्य का भय था।
उस समय कृष्णचन्द्र को अनुभव हुआ कि अब मैं पीछे नहीं फिर सकता। वह धीरे-धीरे आप-ही-आप खिसकते जाते थे। उन्होंने जोर से चीत्कार किया। अपने शीत-शिथिल पैरों को पीछें हटाने की प्रबल चेष्टा की, लेकिन कर्म की गति कि वह आगे ही को खिसके।
अकस्मात उनके कानों में गजाधर के पुकारने की आवाज आई। कृष्णचन्द्र ने चिल्लाकर उत्तर दिया, पर मुंह से पूरी बात भी न निकलने पाई थी कि हवा से बुझकर अंधकार में लीन हो जाने वाले दीपक के सदृश लहरों में मग्न हो गए। शोक, लज्जा और चिंतातप्त हृदय का दाह शीतल जल में शांत हो गया। गजाधर ने केवल यह शब्द सुने ‘मैं यहां डूबा जाता हूं’ और फिर लहरों की पैशाचिक क्रीड़ाध्वनि के सिवा और कुछ न सुनाई दिया।
शोकाकुल गजाधर देर तक तट पर खड़े रहे। वही शब्द चारों ओर से उन्हें सुनाई देते थे। पास की पहाड़ियां और सामने की लहरें और चारों ओर छाया हुआ दुर्भेद्य अंधकार इन्हीं शब्दों से प्रतिध्वनित हो रहा था।
३९
प्रातःकाल यह शोक-समाचार अमोला में फैल गया। इने-गिने सज्जनों को छोड़कर कोई भी उमानाथ के द्वार पर संवेदना प्रकट करने न आया। स्वाभाविक मृत्यु हुई होती, तो संभवतः उनके शत्रु भी आकर चार आंसू बहा जाते, पर आत्मघात एक भंयकर समस्या है, यहां पुलिस का अधिकार है। इस अवसर पर मित्रदल ने भी शत्रुवत व्यवहार किया।
उमानाथ से गजाधर ने जिस समय यह समाचार कहा, उस समय वह कुएं पर नहा रहे थे। उन्हें लेश-मात्र भी दुःख व कौतूहल नहीं हुआ। इसके प्रतिकुल उन्हें कृष्णचन्द्र पर क्रोध आया, पुलिस के हथकंड़ों की शंका ने शोक को भी दबा दिया। उन्हें स्नान-ध्यान में उस दिन बड़ा विलंब हुआ। संदिग्ध चित्त को अपनी परिस्थिति के विचार से अवकाश नहीं मिलता। वह समय ज्ञात-रहति हो जाता है।
जाह्नवी ने बड़ा हाहाकार मचाया। उसे रोते देखकर उसकी दोनों बेटियां भी रोने लगीं। पास-पड़ोस की महिलाएं समझाने के लिए आ गईं। उन्हें पुलिस का भय नहीं था, पर आर्तनाद शीघ्र ही समाप्त हो गया। कृष्णचन्द्र के गुण-दोष की विवेचना होने लगी। सर्वसम्मति ने स्थिर किया कि उनमें गुण की मात्रा दोष से बहुत अधिक थी। दोपहर को जब उमानाथ घर में शर्बत पीने आए और कृष्णचन्द्र के संबंध में कुछ अनुदारता का परिचय दिया, तो जाह्नवी ने उनकी ओर वक्र नेत्रों से देखकर कहा– कैसी तुच्छ बातें करते हो।
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