सदाबहार >> वरदान (उपन्यास) वरदान (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘वरदान’ दो प्रेमियों की कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले...
(१३) कायापलट
पहला दिन तो कमलाचरण ने किसी प्रकार छात्रालय में काटा। प्रातः से सायंकाल तक सोते बिताये। दूसरे दिन ध्यान आया कि आज नवाब साहब और तीखे मिर्जा के बटेरों में बढ़ाऊ जोड़ है। कैसे-कैसे मस्त पट्ठे हैं। आज उनकी पकड़ देखने के योग्य होगी। सारा नगर फट पड़े तो आश्चर्य नहीं। क्या दिल्लगी है कि नगर के लोग तो आनंद उड़ायें और मैं पड़ा रोऊं। यह सोचते-सोचते उठा और बात की बात में अखाड़े में था।
यहां आज बड़ी भीड़ थी। एक मेला-सा लगा हुआ था। भिश्ती छिड़काव कर रहे थे, सिगरेट, खोमचे वाले और तम्बोली सब अपनी-अपनी दुकान लगाये बैठे थे। नगर के मनचले युवक अपने हाथों में बटेर लिये या मखमली अड्डों पर बुलबुलों को बैठाये मटरगश्ती कर रहे थे कमलाचरण के मित्रों की यहां क्या कमी थी। लोग उन्हें खाली हाथ देखते तो पूछते– अरे राजा साहब! आज खाली हाथ कैसे? इतने में मियां, सैयद मजीद, हमीद आदि नशे में चूर, सिगरेट के धुऐं भकाभक उड़ाते देख पड़े। कमलाचरण को देखते ही सब-के-सब सरपट दौड़े और उससे लिपट गये।
मजीद– आज तुम कहां गायब हो गए थे यार, कुरान की कसम मकान के सैकड़ों चक्कर लगाये होंगे।
रामसेवक– आजकल आनंद की रातें हैं, भाई! आंखें नहीं देखते हो, नशा-सा चढ़ा हुआ है।
चन्दूलाल– चैन कर रहा है पट्ठा। जब से सुन्दरी घर में आयी, उसने बाजार की सूरत तक नहीं देखी। जब देखो, ये घर में घुसा रहता है। खूब चैन कर ले यार!
कमला– चैन क्या खाक करूं? यहां तो कैद में फंस गया। तीन दिन से बोर्डिंग में पड़ा हुआ हूं।
मजीद– अरे! खुदा की कसम?
कमला– सच कहता हूं, परसों से मिट्टी पलीद हो रही है। आज सबकी आंख बचाकर निकल भागा।
रामसेवक– खूब उड़े। वह मुछंदर सुपरिण्टेण्डेण्ट झल्ला रहा होगा।
कमला– यह मार्के का जोड़ छोड़कर किताबों में सिर कौन मारता।
सैयद– यार, आज उड़ आये तो क्या? सच तो यह है कि तुम्हारा वहां रहना आफत है। रोज तो न आ सकोगे? और यहां आये दिन नयी सैर, नयी-नयी बहारें, कल लाल डिग्गी पर, परसों प्रेट पर, नरसों बेड़ों का मेला...कहां तक गिनाऊं, तुम्हारा जाना बुरा हुआ।
कमला– कल की कटाव तो मैं जरूर देखूंगा, चाहे इधर की दुनिया उधर हो जाय।
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