लोगों की राय

सदाबहार >> वरदान (उपन्यास)

वरदान (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :259
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8670

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

24 पाठक हैं

‘वरदान’ दो प्रेमियों की कथा है। ऐसे दो प्रेमी जो बचपन में साथ-साथ खेले...

(२१) विदुषी वृजरानी

जब से मुंशी संजीवनलाल तीर्थ यात्रा को निकले और प्रतापचन्द्र प्रयाग चला गया उस समय से सुवामा के जीवन में बड़ा अन्तर हो गया था। वह ठेके के कार्य को उन्नत करने लगी। मुंशी संजीवनलाल के समय में भी व्यापार में इतनी उन्नति नहीं हुई थी। सुवामा रात-रात भर बैठी ईंट-पत्थरों से माथा लड़ाया करती और गारे-चूने की चिंता में व्याकुल रहती। पाई-पाई का हिसाब समझती और कभी-कभी स्वयं कुलियों के कार्य की देखभाल करती। इन कार्यों में उसकी ऐसी प्रवृति हुई कि दान और व्रत से भी वह पहले का-सा प्रेम न रहा। प्रतिदिन आय वृद्वि होने पर भी सुवामा ने व्यय किसी प्रकार का न बढ़ाया। कौड़ी-कौड़ी दाँतों से पकड़ना और यह सब इसलिए कि प्रतापचन्द्र धनवान हो जाय और अपने जीवन-पर्यन्त सानन्द रहे।

सुवामा को अपने होनहार पुत्र पर अभिमान था। उसके जीवन की गति देखकर उसे विश्वास हो गया था कि मन में जो अभिलाषा रखकर मैंने पुत्र माँगा था, वह अवश्य पूर्ण होगी। वह कॉलेज के प्रिंसिपल और प्रोफेसरों से प्रताप का समाचार गुप्त रीति से लिया करती थी और उनकी सूचनाओं का अध्ययन उसके लिए एक रोचक कहानी के तुल्य था। ऐसी दशा में प्रयाग से प्रतापचन्द्र के लोप हो जाने का तार पहुँचा मानो उसके हृदय पर वज्र का गिरना था। सुवामा एक ठण्डी साँस ले, मस्तक पर हाथ रख बैठ गई। तीसरे दिन प्रतापचन्द्र की पुस्तक, कपड़े और सामग्रियाँ भी आ पहुँची, यह घाव पर नमक का छिड़काव था।

प्रेमवती के मरने का समाचार पाते ही प्राणनाथ पटना से और राधाचरण नैनीताल से चले। उसके जीते-जी आते तो भेंट हो जाती, मरने पर आए तो उसके शव को भी देखने का सौभाग्य न हुआ। मृतक-संस्कार बड़ी धूम से किया गया। दो सप्ताह गाँव में बड़ी धूम-धाम रही। तत्पश्चात् राधाचरण मुरादाबाद चले गये और प्राणनाथ ने पटना जाने की तैयारी प्रारम्भ कर दी। उनकी इच्छा थी कि स्त्री को प्रयाग पहुँचाते हुए पटना जाएं। पर सेवती ने हठ किया कि जब यहाँ तक आए हैं, तो विरजन के पास भी अवश्य चलना चाहिए नहीं तो उसे बड़ा दुःख होगा। समझेगी कि मुझे असहाय जानकर इन लोगों ने भी त्याग दिया।

सेवती का इस उचाट भवन में आना मानो पुष्पों में सुगन्ध आना था। सप्ताह भर के लिए सुदिन का शुभागमन हो गया। विरजन बहुत प्रसन्न हुई और खूब रोयी। माधवी ने मुन्नू को अंक में लेकर बहुत प्यार किया। बाहर की बैठक कई मास से बन्द थी, आज उसके भी भाग्य जागे। उजड़ा हुआ घर बसा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book