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अमेरिकी यायावर

योगेश कुमार दानी

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9435

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उत्तर पूर्वी अमेरिका और कैनेडा की रोमांचक सड़क यात्रा की मनोहर कहानी


समय का चक्र चलता रहता है। एक समय था कि जब योरोप के साधारण से साधारण देशों के रहने वाले भी अन्य महाद्वीपों के देशों के लोगों से अधिक सम्पन्न और प्रभुसत्ता रखने वाले होते थे। पर अब अमेरिका, चीन और रूस का जमाना है। हम लोग आखरी फेरी पकड़ने तट के पास पहुँचे। वहाँ पहुँचकर मैंने न्यू जर्सी के लिए फेकी का टिकट माँगा तो टिकट क्लर्क ने मुझे बताया कि लिबर्टी आइलैण्ड की आखिरी फेरी जा चुकी थी। मैं परेशानी में पड़ गया और सोचने लगा कि अब क्या करूँ। मेरी कार तो न्यू जर्सी के लिबर्टी पार्क में खड़ी थी। मैंने टिकट क्लर्क को अपनी परेशानी बताई तो वह बोला, “यदि आपको लिबर्टी स्टेट पार्क जाना है तो आप लाइट रेल से भी जा सकते हैं।”
टिकट क्लर्क की बात मानकर हम वहाँ से पुनः फ्रीडम टॉवर के नीचे बने पाथ प्लेटफार्म पर पहुँचे। पाथ का टिकट लेकर हम नदी पार करके एक्सचेंज प्लेस गये। एक्सचेंज प्लेस में और लोगों के पीछे-पीछे चलते हुए लगभग 6-7 मंजिल ऊपर भूमितल पर आये। थोड़ी देर भटकने के बाद मुझे लाइट रेल का प्लेटफार्म दिखाई दिया। वहाँ से लाइट रेल लेकर हम लिबर्टी स्टेट पार्क स्टेशन पहुँचे। अब तक शाम का लगभग साढ़े आठ बज रहा था। वहाँ उतरने वाले यात्रियों में से एक से पूछकर हम लगभग एक मील पैदल चलते हुए पुनः लिबर्टी स्टेट पार्क की पार्किंग में पहुँचे। ठीक से समझ न पाने के कारण यह धोखा हो गया था।
कार के ट्रंक से पानी निकाल कर पिया और चिप्स खाते हुए मैंने सोचा कि अब साइंस सेंटर अथवा आई मेक्स देखने के लिए समय ही नहीं बचा था। हमने अपनी कार ली और निकल पड़े। मार्ग में मैने मेरी एन से पूछा, “आपको भोजन कहाँ करना है?” वह बोली, “कहीं भी कर लेते हैं।“ हम लोग अभी रूट 24 पर ही होंगे कि जीपीएस पर दिखने वाले भोजनालयों में एक भारतीय भोजनालय का नाम दिखा तो मैंने उससे पूछा, “क्या आप भारतीय भोजन करना चाहेंगी?“ वह बोली, “मुझे कोई ऐतराज नहीं है।“ उसका उत्तर मुझे अटपटा सा लगा, पर मैं चुप रहा।
जीपीएस में साढ़े सात मील की दूरी पर चाँद पैलेस नामक रेस्तराँ दिख रहा था। मैंने चाँद पैलेस के मार्ग निर्देशन का बटन दबा दिया। रेस्तराँ रात दस बजे तक खुला रहने वाला था।
अंदर जाकर बैठने के बाद मेरा ध्यान गया कि भोजन “बफे” के रूप में भी उपलब्ध है। मैं उठकर भोजन के थालों के पास जाकर यह देखने गया तो पाया कि छोले, दाल मक्खनी, भिंडी, नवरतन कोरमा, चाट आदि कई प्रकार की चीजें उपलब्ध थीं। इन विभिन्न व्यञ्जनों को देखते-देखते मुझे अचानक यह भान हुआ कि इनमें से माँसाहारियों के लिए कुछ भी नहीं था। मैं तुरंत मेरी एन के पास गया और बोला, “यहाँ पर केवल शाकाहारी भोजन ही दिख रहा है, क्या कहीं और चलें?” इससे पहले कि मेरी एन कुछ कहती, हमी मेज के पास ही आया हुआ रेस्तराँ का मैनेजर बोला, “एक बार आप आजमा कर देखिए यदि भोजन पसंद न आये तो पेमेंट आन दि हाउस होगा। वैसे भी हम लोग हिन्दुस्तानी हैं, हमारे यहाँ भोजन के लिए आये व्यक्ति का बिना भोजन किये जाना अच्छा नहीं माना जाता।“ एक क्षण के लिए मेरी एन के चेहरे पर कुछ असुविधा के भाव आये परंतु उसने अपने आप को तुरंत संभाल लिया और बोली, “नहीं मुझे कोई समस्या नहीं है।“ मैं कुछ असंमजस की स्थिति में था। तब तक मेरी एन बोली, “चलेगा। और वैसे भी अब देर हो रही है।“ मैने मैंनेजर से यह अवश्य पूछा, “क्या आपके भोजन में मिर्च और मसाले अधिक तो नहीं हैं? मेरी मित्र भारतीय भोजन की अभ्यस्त नहीं हैं!” मैंनेजर बोला, “यदि ऐसा है तो आप भिंडी और छोले मत लीजिए और क्रीम वाली सब्जियों का आनन्द लीजिए, वही ठीक रहेगा।”

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where to find full book

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Thank you giving this book for free