लोगों की राय

मूल्य रहित पुस्तकें >> अमेरिकी यायावर

अमेरिकी यायावर

योगेश कुमार दानी

Download Book
प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9435

Like this Hindi book 4 पाठकों को प्रिय

230 पाठक हैं

उत्तर पूर्वी अमेरिका और कैनेडा की रोमांचक सड़क यात्रा की मनोहर कहानी



सोमवार


आज कुछ जल्दी ही मेरी नींद खुल गई। कमरे में सामने रखी घड़ी पर ध्यान गया तो वह 5:14 मिनट का समय दिखा रही थी। उठने को हुआ तो अचानक मेरा ध्यान गया कि मेरे बिलकुल बगल में मेरी एन लेटी हुई थी, हालाँकि हमारे शरीर आपस में स्पर्श नहीं कर रहे थे। मुझे पहले तो आश्चर्य हुआ कि ऐसा क्यों है, परंतु कुछ क्षणों के बाद मुझे याद आ गया कि बीती शाम को डेलावेयर गैप के पार्क में अकस्मात् एक काले भालू से हमारा सामना हो गया था। हमें कुछ हुआ तो नहीं था, परंतु उससे सामना होने के बाद उस पार्क से हम तुरंत निकल कर सहमें हुए अपने होटल वापिस आ गये थे।

मैं खुद भी जंगल में अचानक एक बड़े और स्वतंत्र भालू को, वह भी जब हम दोनों उस जंगल में अकेले थे और हमारे पास किसी प्रकार की अन्य सुरक्षा नहीं थी, देखकर घबरा गया था। मुझे नहीं मालूम था कि इस प्रकार के जंगल में रहने वाले भालू मनुष्यों पर आक्रमण करते हैं अथवा नहीं! शायद नहीं! अन्यथा ऐसी खबरें सभी को मालूम होतीं और लोग पहले से ही इन पार्कों मे ऐसे न जाते। पर यह बात भी, अब समझ में आ रही थी।
जंगली भालू मानवीय जीवन के लिए हानिकारक हो सकते हैं कि नहीं, यह बात अब हमारे व्यक्तिगत अनुभव का हिस्सा बन गई थी। भालू ने हमें कोई नुकसान नहीं पहुँचाया था, परंतु ऐसा हो सकने की संभावना निश्चित ही थी! हम इस यथार्थ का सामना कर चुके थे! प्रतिक्रिया में उस तो बुद्धि में केवल यही आया था कि ऐसी अवस्था में जंगली जानवरों के सामने ऐसी स्थिति बनानी चाहिए कि जैसे वहाँ मनुष्यों की एक बड़ी भीड़ आई है, न कि हम अकेले हैं। विशेष बात यह थी कि उसे देखकर इंसानों को एक ऐसी दूरी बनाकर रखनी चाहिए कि जिससे जानवरों को सीधा खतरा न महसूस हो, पर यह भी हो कि उन्हें यह समझ में आये कि आपके पीछे और लोग भी हैं। संभवतः सदियों की मनुष्यों और जानवरों की लड़ाई में कौन अधिक ताकतवर है, इस स्वाभाविक तथ्य की एक बार पुनः परीक्षा की घड़ी थी।
मैंने जो कुछ उस समय किया उसके पीछे कोई गहरी सोच नहीं थी। बस उस घड़ी जो याद आया और बुद्धि में आया, वह करता गया। शायद मेरी जगह कोई और होता तो इस अवस्था में अपने आपको और अच्छी तरह संभाल लेता। परंतु मुझे इसका कोई पूर्वाभ्यास नहीं था और जंगल में जाने से पहले मैंने सोचा भी नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है, अन्यथा कुछ नहीं तो कम-से-कम मानसिक तैयारी तो करके आता। शायद कुछ और लोगों की टोली के साथ चलता। या फिर जंगल के हिस्से में इतनी दूर तक नहीं आता।
मैंने बहुत अधिक मूर्खता और अपरिपक्वता का प्रदर्शन किया था। अपने लिए और मेरी एन, दोनों के लिए बिना सोचे इस प्रकार का अनजान खतरा मोल लिया था। लगातार मनुष्यों के बीच रहते हुए और स्वच्छन्द जानवरों को केवल टी वी में देखते हुए मुझे कृत्रिम सुरक्षा का अभ्यास पड़ गया था। टीवी के कामिक शो आदि में रचनाकारों की कल्पना से प्रभावित हो जाने के कारण हमें ऐसा लगता है कि जैसे सभी जानवर भोले-भाले और सहृदय होते हैं, जैसे जंगल बुक में बल्लू भालू होता था। मुझे ध्यान ही था कि जंगली जानवर को “जंगली” और “जानवर” क्यों कहते हैं।
यदि मुझे मालूम होता कि ऐसा हो सकता है, यदि मैंने इंटरनेट पर इस जंगल के बारे में और अधिक जानकारी पहले से ही पढ़ ली होती तो अधिक समझदारी की होती। इत्तफाक से मैने पार्क रेंजर का फोन नंबर तो ले लिया था, परंतु इसके अलावा मैंने कोई अन्य सावधानी नहीं रखी थी। कुछ नहीं तो कम से कम पेप्पर स्प्रे या ऐसी कोई सुरक्षा की वस्तु तो ले ही ली होती! मैं ही जानता था कि मैंने कितनी बड़ी वेबकूफी की थी!
मुझे याद है, जब मैंने सबसे पहले हॉलीवुड की “जॉज” फिल्म देखी थी जिसमें एक बहुत बड़ी शॉर्क मछली को मानवों के माँस का स्वाद लग जाता है। उस फिल्म में एक दृश्य में एक लड़का और लड़की रात में नशे में एक दूसरे के साथ खेलते हुए तैरने चले जाते हैं। इन दोनों को कोई खबर नहीं है कि शार्क का आतंक छाया हुआ है। वे तो अपनी दुनिया में मस्त हैं, उनके लिए समुद्र वही है जो पहले होता था। समुद्र केवल तैरने और मजे करने की वस्तु है न कि अपनी सुरक्षा के विषय में चिंता करने की। यह अलग बात है कि समुद्रों से हमेशा दूर रहने के कारण मुझे अथाह सागर के अथाह जल का भय है। उनको समुद्र में जाते देख मैने सोचा था कि ऐसी बेवकूफी कौन करता है? जिसमें कि रात में समुद्र में तैरने जाने की गुस्ताखी की जाए, वो भी समुद्रतट के उस स्थान पर जहाँ जीवन रक्षक भी नहीं रहते हैं। इतनी समझ तो होनी चाहिए इंसान में। अगर नहीं है तो अपने जीवन से हाथ धोना ही पड़ेगा। फिल्म के कलाकारों को तो फिर भी माफ किया जा सकता है क्योंकि कहानी के अनुसार उन्हें शार्क के नरभक्षी हो जाने के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इसके अलावा वह तो केवल फिल्म की कहानी थी! मैं तो वास्तविक जीवन में उससे भी बड़ी गलती कर रहा था। धिक्कार है मुझ पर!
यही सब बातें मन में सोचता हुआ मैं बिस्तर से उठा और बाथरूम की तरफ बढ़ा। तभी मुझे पीछे से आवाज सुनाई पड़ी। “मुझे क्षमा कर दीजिए कि मुझे आपको तकलीफ देनी पड़ी। कल रात मुझे बहुत डर लग रहा था और डर के कारण नींद नहीं आ रही थी। मुझे आशा है कि मैने आपको बहुत परेशान नहीं किया होगा?” मैं आवाज सुनकर एकबारगी रुक गया। मुझे कुछ क्षण लगे यह समझने में कि मैं परेशान क्यों हुआ होऊँगा? पर मेरे मस्तिष्क ने शायद एक दो सेकेंडों के अवलोकन में ही इस बात का निर्णय कर लिया कि उसके इस प्रकार मेरे बिस्तर में आ जाने में मुझे कोई विशेष परेशानी नहीं हुई थी। उल्टे उसके बिस्तर पर आने के कुछ समय बाद के बारे में मुझे यह तो याद आ रहा था कि उसके काँपते शरीर को सान्तवना देने के लिए मैंने उसकी पीठ पर अपनी हथेली से थपकी दी थी, पर ऐसा करते हुए कब मैं सो गया था, इसकी कोई स्मृति नहीं थी।
उसकी बात के उत्तर में मैने कहा, “नहीं ऐसी कोई बात नहीं। आखिर हम सहयात्री हैं तो एक दूसरे को आवश्यकता पड़ने पर सहायता तो देंगे ही।” मेरा झूठा अहंकार अपने अपराध-बोध का पिटारा खोलने के लिए तैयार नहीं था। उस पार्क में जाने की योजना मैंने ही बनाई थी। मेरी इस योजना की वजह से उसका जीवन भी इस बिन बुलाए खतरे में पड़ गया था। कल शाम हम दोनों घातक रूप से घायल भी हो सकते थे! ऐसा हुआ नहीं! परंतु संभावना तो निश्चित् ही थी। कुछ नहीं तो हम अपनी वेबकूफी से ही नुकसान की स्थिति में हो सकते थे। प्रत्यक्ष में मेरी एन बोली, “मेरी धृष्टता के लिए मुझे क्षमा करें और मेरा ख्याल रखने के लिए धन्यवाद।”
मैं मेरी एन से बोला, “कोई बात नहीं”, मुझे अपना अपराध बोध और झूठा स्वाभिमान, अब भी यह नहीं स्वीकारने दे रहे थे, कि सारी गलती मेरी ही थी। मैं एक क्षण चुप रहा और फिर बात टालने और नित्य कर्म से निपटने के लिए तेजी से बाथरूम में घुस गया ताकि तैयार होकर व्यायामशाला में जा सकूँ। मेरे लिए व्यायामशाला अपनी सभी समस्याओं पर विचार करने के लिए सबसे उपयुक्त स्थल थी। जिस समय मैं बाथरूम से बाहर निकला, मेरी एन भी बिस्तर से बाहर निकलकर एक आराम कुर्सी वाले सोफे पर बैठी हुई थी। मुझे व्यायामशाला जाने के लिए तैयार देखकर वह बोली, “क्या आप 2 मिनट रुक सकते हैं, मैं भी आपके साथ व्यायामशाला चलूँगी।” मुझे उसकी इस बात पर आश्चर्य हुआ, पर मैंने प्रत्यक्ष में कुछ नहीं कहा। मेरे मुँह से केवल एक ही शब्द निकल सका, “श्योर”।
थोड़ी देर में हम दोनों व्यायामशाला में पहुँच गये। मैंने अपने नियमित अभ्यास आरंभ कर दिये। वह कुछ क्षणों तक वजन उठाने की कोशिश करती रही। उसके बाद कुछ समय ट्रेड मिल पर चलती रही। यह स्पष्ट था कि वह व्यायाम करने की अभ्यस्त नहीं है। लगभग आधे घंटे बाद जब मैं इस निश्चय पर पहुँच गया कि वह व्यायामशाला में किसी तरह अपना समय काट रही थी और संभवतः उसे बिलकुल भी आनन्द नहीं आ रहा था, वह या तो मेरा आभार प्रगट करने के लिए मेरे साथ आई थी, अथवा वह अभी भी कल की घटना से डरी हुई थी, इसलिए अकेले नहीं रहना चाहती थी, दूसरी संभावना अधिक प्रबल थी। तब मैंने उससे कहा, “मुझे तो अभी कम-से-कम आधा घंटा और लगेगा। अगर आप चाहें तो, तब तक तैयार होकर वीसा का काम होने के बाद हम न्यूयार्क में किन स्थानों पर घूमने जा सकते हैं, यह योजना बना लीजिए।” उसने दुविधा में कुछ मिनट सोचा, फिर बोली, “हाँ, यही ठीक है मैं तैयार होती हूँ।”
व्यायाम करने के बाद जब मैं कमरे पर पहुँचा, उस समय तक तैयार होकर वह कुर्सी पर बैठी हुई न्यूयार्क के भ्रमण स्थलों के बारे में इंटरनेट पर देख रही थी। मैं भी फटाफट तैयार हुआ और हम अपना सामान अपने स्ट्रॉली बैग में रखने लगे। असल में मेरी एन ने अपना सामान पहले ही रख लिया था और साथ ही मेरा सामान मेरे बैग के पास रख दिया था, इससे काम बस कुछ ही मिनटों में हो गया और हम अपने बैगों को लेकर नीचे आ गये।
नाश्ते की मेज पर जाने से पहले मैंने अपना और मेरी एन दोनों के बैग कार में ले जाकर रख दिये। कमरे के बिल के विवरण वाला कागज होटल वालों ने पहले ही हमारे कमरे के दरवाजे की नीचे की झिर्री से खिसका कर डाल दिया था। इसलिए अब चेक आउट करने की औपचारिकता भी नहीं थी।
हमने अपना मनपसंद नाश्ता किया और वहीं से काफी तथा एक-एक केले और सेब रास्ते के लिए भी रख लिए। कार में सवार होकर निकलते समय घड़ी लगभग आठ बजा रही थी। हम रूट 46 पर ज्योंही पहुँचे, सोमवार की भीड़ ने हमारा स्वागत किया। वहाँ से हमारी कार कभी बहुत धीरे और कभी थोड़ी गति पकड़ती हुई चलती रही। रूट 46 से रूट 3 और फिर वहाँ से लिंकन टनल होते हुए हम लगभग 10 बजे के करीब न्यूयार्क मेनहटन की 40वीं स्ट्रीट पर पहुँच सके।
मेरी एन ने जीपीएस में पार्किंग स्थलों की जानकारी पढ़कर बताया, “हमें उनचासवीं स्ट्रीट पर पार्क करना चाहिए।“ न्यूयार्क के मेनहटन इलाके में पूर्व से पश्चिम अथवा पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर जाने वाली सड़कें स्ट्रीट कहलाती हैं और उत्तर से दक्षिण तथा दक्षिण से उत्तर जाने वाली सड़कें एवेन्यू कहलाती हैं। एक स्ट्रीट से दूसरी स्ट्रीट के बीच की दूरी को ब्लॉक कहते हैं, क्योंकि वे इमारतों का एक ब्लॉक बनाती हैं। लगभग सभी जगह एक स्ट्रीट से दूसरी स्ट्रीट की दूरी लगभग 2 दो मिनट में पैदल तय की जा सकती है। एक एवेन्यू से दूसरे एवेन्यू की दूरी, एक स्ट्रीट से दूसरे स्ट्रीट के बीच की दूरी से तीन या चार गुणा तक होती है। छह चौड़ी स्ट्रीटों को छोड़कर न्यूयार्क की अधिकतर सभी स्ट्रीट केवल एक दिशा में जाती है, चालीसवीं स्ट्रीट पर दायें मुड़कर हम कुछ आगे चले और फिर आठवीं एवेन्यू पर उत्तर की ओर चले। आठवीं एवेन्यू पर कुछ ब्लाक चलने के बाद हम उनचासवीं स्ट्रीट की ओर दायें मुड़ गये। पार्किंग का बोर्ड देखकर जब हम अपनी कार अंदर ले जाने लगे तो पाया कि वहाँ पर फुल का बोर्ड लगा था। अचानक हमारी योजना बिगड़ गई थी। परंतु कार को कहीं तो पार्क करना ही था। मेरे यूनिवर्सिटी के साथियों ने बताया था कि कैसे वे डाउन टाउन की स्ट्रीट पार्किग में अपनी कार खड़ी करके बार-बार सिक्के डालते रहते हैं। हमने भी सोचा कि यदि कोई स्ट्रीट पार्किंग मिल जाये तो अच्छा रहे।
कुछ देर तक हम इधर से उधर कार घुमाते रहे परंतु कहीं पर भी स्ट्रीट पार्किंग नजर ही नहीं आ रही थी। जहाँ भी लगता है कि यहाँ जगह मिल जायेगी, हर बार कुछ न कुछ समस्या हो जाती। कभी किसी का दरवाजे का रास्ता दिखता कभी फायर प्लेस। इस तरह कुछ समय तक चक्कर काटने के बाद हमें इक्यावनवीं स्ट्रीट पर पार्किग तो मिली पर पार्किंग की फीस थी 33 डालर! अच्छी बात यह थी कि यह फीस पूरे दिन के लिए थी! पहले हमने सोचा कि और खोजें, परंतु फिर यही निश्चय बना कि अगर यहीं पर पार्किंग कर ली जाए तो कम से कम दिन भर की चिंता से मुक्त हो जायेंगे और फिर आराम से आस-पास सभी जगह घूमेंगे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

Narendra Patidar

सड़क यात्रा में प्रेम - फूस और चिंगारी

Anshu  Raj

Interesting book

Sanjay Singh

america ke baare mein achchi jankari

Nupur Masih

Nice road trip in America

Narayan Singh

how much scholarship in American University

Anju Yadav

मनोरंजक कहानी। पढ़ने में मजा आया

MANOJ ANDERIYA

Is it easy make girl friends in America

Abhishek Sharma

where i get full story of this book

Shivam  Soni

मस्त कहानी

SUNIL PANDEY

where to find full book

Sanjay Nagpal

Very good romantic novel

Gd Mehra

Thank you giving this book for free