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अमेरिकी यायावर

योगेश कुमार दानी

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प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9435

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उत्तर पूर्वी अमेरिका और कैनेडा की रोमांचक सड़क यात्रा की मनोहर कहानी


गूगनहाइम म्यूजियम अंदर से एक गोल आकार की इमारत निकली जिसमें दर्शक गोलाकार चढ़ाई पर चलते हुए विभिन्न मंजिलों पर प्रदर्शित चित्रों और कलाकृतियों को देख सकते हैं। थोड़ी देर चित्रों को देखने के बाद मुझे लगने लगा कि इस म्यूजियम में प्रदर्शित लगभग सारे चित्र पाब्लो पिकासो को समर्पित हैं। मुझे नहीं मालूम था कि गूगनहाइम म्यूजियम पिकासो के चित्रों का संग्रह है। मैं अभी इस जानकारी से समझौता करने की कोशिश कर रहा था कि तभी वहाँ लगी एक सूचना से स्पष्ट हुआ कि इस सप्ताह पाब्लो पिकासो की चित्र और कलाकृतियाँ प्रदर्शित की जा रही हैं। कई आड़े-तिरछे चित्रों को देखने के बाद जब अंतोगत्वा मेरी कला की समझ जवाब देने लगी तो मैंने मेरी एन से कहा, “मेरा ज्ञान कला के क्षेत्र में सीमित है, क्या आप मुझे इन चित्रों के पीछे कला को समझने में मदद करेंगी?“
मेरी एन ने मेरी यह माँग तो सहज ही स्वीकार कर ली। परंतु उससे एक नई समस्या उठ खड़ी हुई, जिसके बारे में मैने सोचा ही नहीं था! स्पेनी चित्रकार पिकासो ने अपने चित्रों में आयताकार आकार का जमकर प्रयोग किया था। उसके चित्रों में जगह-जगह आयत और घनों का प्रयोग वहाँ भी हुआ है, जहाँ आप इस प्रकार के आकारों को साधारणतः नहीं देखते हैं। एक समय आया कि जब पिकासो को लगने लगा कि रंगों से उनके चित्रों की अभिव्यक्ति उतनी गहराई तक नहीं हो पाती है तब उन्होंने अपने चित्रों में रंग बिलकुल ही हटा दिये और केवल काले-सफेद चित्र बनाने लगे। उनकी यह जिद उनके बाद के चित्रों में भी दिखती है, विशेषकर द्वितीय महायुद्ध के समय की हिंसा के चित्रों में।
आमतौर पर जैसे-जैसे व्यक्ति उम्र में बढ़ता है उसका ध्यान दैहिक चीजों से मानसिक अथवा आध्यात्मिक चीजों की ओर जाता है, पर लगता है कि अपने जीवन के अंतिम 10-15 वर्षों में पिकासो के मस्तिष्क पर नारी देह बहुत अधिक छा गई थी! चार मंजिलों पर फैली इस गैलरी में प्रदर्शित अधिकांश चित्रों में पुरुष और नारी देह के जननांग नाना प्रकार से चित्रित किए गये थे। मेरी एन ने मुझे कुछ चित्रों के बारे में विस्तार से समझाया, परंतु शीघ्र ही यह स्थापित हो गया कि विषय नारी और पुरुषों के जननांगो के आस-पास ही घूमता रहेगा, मेरी एन की जगह यदि कोई मेरा पुरुष मित्र होता तो इस विषय पर गहन विचार विमर्श किया जाता।
मेरी एन के इंगित करने और चित्रों की बारीकी समझाने से मुझे यह समझ में आया कि पिकासो कितना प्रतिभाशाली चित्रकार था और क्यों उसे बीसवीं सदी के महान चित्रकारों में गिना जाता है। केवल काले सफेद ब्रशों का प्रयोग करके उसने अत्यधिक गंभीर चित्रकारी की है। आरंभ में मेरी एन के ध्यान दिलाने से और फिर धीरे-धीरे समझ आने के बाद ही मुझे समझ में आ पाया कि पिकासो कैसी-कैसी वस्तुओं और परिस्थितियों में नग्न नारी देह की कल्पना कर लेता था। यह सम्भवतः संयोग ही था कि उस समय संग्रहालय के चित्रों और अन्य आकृतियों में मानव शरीर (नारी और पुरुष दोनों) के जननांगो का जबरदस्त मेला था। मुझे एक अज़नबी लड़की के साथ इनको देखने में अटपटा लग रहा था, परंतु कला के नाम पर मैं एक प्रकार के विरक्त भाव से किसी तरह देखता रहा। मेरी एन मुझे चहकते हुए बता रही थी, कि पाब्लो स्पेन में पैदा होने के बावजूद स्पेन से पेरिस पहुँच गया था और उसे वहाँ से बहुत प्रेरणा मिली थी। संभवतः फ्राँसीसी होने का उसे गर्व हो रहा था।
मैं कोशिश तो कर रहा था, परंतु फाइन आर्ट इतनी जल्दी न तो समझ में आने वाली चीज है और न ही कुछ घंटों में उसमे इतनी रुचि पैदा हो सकती थी। लगभग साढ़े छह बजे हम लोग गूगनहाइम से बाहर निकले। अभी तक इस यात्रा में बहुत कुछ नया देखने को मिला था, परंतु आगे के लिए मैं और भी अधिक उत्साहित था।
गूगनहाइम से निकल कर टहलते हुए हम पार्क एवेन्यू और 86 स्ट्रीट के पास वाले सबवे स्टेशन पहुँचे। वहाँ से मेट्रो के एकतरफा टिकट लेकर हमने दक्षिण जाने वाली क्रमांक 4 की सबवे रेल पकड़ी और 42वीं स्ट्रीट पर स्थित ग्रांड सेंट्रल स्टेशन पर पहुँचे। वहाँ से हमने क्रमांक 7 की रेल पकड़ी और 42वीं स्ट्रीट और 7वीं एवेन्यू के स्टेशन पर जाकर रेल से उतरे। सबवे से निकलकर बाहर आते-आते मेरा ध्यान गया कि हम लोगों की रेल धरती के लगभग 7 मंजिल नीचे बने हुए स्टेशन पर रुकी थी और हमें वहां से भूमितल तक आने में एक छोटा और एक काफी लंबा एस्केलेटर लेना पड़ा था। मैं अमेरिकी लोगों के कर्म-कौशल के विषय में सोचे बिना न रह सका। सात मंजिल नीचे तक गहराई में चट्टानों को काटकर बनाया गया कई मंजिला सबवे स्टेशन मानवीय जुझारूपन का एक अच्छा नमूना है। टाइम्स स्कवायर पर बना स्टेशन कई मंजिलों में बना है, और उन विभिन्न मंजिलों पर कई दिशा से रेलें आती-जाती हैं।
सबवे स्टेशन से निकल कर ऊपर आते ही लगा कि हम किसी बड़े मेले की जगह आ गये हैं। आस-पास हजारों लोग इधर-उधर आते जाते दिख रहे थे। आठवीं एवेन्यू से छठी एवेन्यू की ओर 42 वीं स्ट्रीट पर जाते हुए जल्दी-जल्दी में सड़क पार करने के चक्कर में मेरे साथ चलती मेरी एन बिना सड़क पर देखे हुए कुछ अधिक ही आगे बढ़ गई, तभी उसके बायें से पूर्व दिशा की ओर जाती हुई कार को तेजी से निकलते देखकर मैंने उसका बायाँ हाथ पकड़ कर शीघ्रता से अपनी ओर खींचा, तब तक कार उसके बायें हाथ को लगभग छूती हुई निकल गई। मेरी एन कुछ क्षण के लिए घबराई, परंतु जल्दी ही संभल गई। गजब की रंगीनी थी यहाँ पर! बड़े-बड़े विशालकाय इलेक्ट्रॉनिक बोर्ड अलग-अलग चीजों का विज्ञापन कर रहे थे। सोनी, पैनासॉनिक, नाइकी, कोका-कोला, पेप्सी और कुछ हालीवुड की आगामी फिल्मों के बोर्ड! कुछ बिलबोर्ड तो लगभग 100 फीट ऊँचाई और 70-80 फीट चौड़ाई तक के लगे थे। कहते हैं कि यहाँ पर लगा सोनी और नाइकी जैसे विज्ञापनों का बिलबोर्ड इन कम्पनियों को दस लाख से चालीस लाख डालर तक की कीमत का पड़ता है। शायद ऐसी जगहों पर सबका ध्यान रहता है इसलिए विज्ञापन की एजेंसियाँ इसका फायदा उठाती हैं। वैसे इसका एक कारण सम्भवतः यह भी हो सकता है कि बहुमंजिला इमारतों मे रहने वाले लोग या कार्यालय इस जगह का अनाप-शनाप किराया देते होंगे। ऐसे में वे अपनी खिड़कियों के आगे कोई इलेक्ट्रॉनिक बोर्ड आखिर क्यों लगाने देंगे?

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Thank you giving this book for free