धर्म एवं दर्शन >> आदित्य हृदय स्तोत्र आदित्य हृदय स्तोत्रअगस्त्य ऋषि
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भगवान सूर्य की आराधना
रश्मिमन्तं
समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं
भुवनेश्वरम्।।6।।
rashmi mantam samudyantam
devasura-namaskritam |
pujayasva vivasvantam bhaskaram
bhuvaneshvaram || 6
'भगवान
सूर्य अपनी अनन्त किरणों से सुशोभित (रश्मिमान्) हैं। ये नित्य उदय होने
वाले (समुद्यन्), देवता और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान् नाम से प्रसिद्ध,
प्रभा का विस्तार करने वाले (भास्कर) और संसार के स्वामी (भुवनेश्वर) हैं।
तुम इनका (रश्मिमते नमः, समुद्यते नमः, देवासुरनमस्कताय नमः, विवस्वते
नमः, भास्कराय नमः, भुवनेश्वराय नमः इन नाम मंत्रों के द्वारा) पूजन करो।'
।।6।।
Worship
the sun-god, the ruler of the worlds and lord of the universe, who is
crowned with effulgent rays, who appears at the horizon and brings
light, who is revered by the denizens of heaven (devas) and asuras
alike. 6
सर्वदेवात्मको
ह्येषः तेजस्वी रश्मिभावनः।
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति
गभस्तिभिः।।7।।
sarva devatmako hyesha tejasvi
rashmi-bhavanah |
esha devasura gananlokan pati gabhastibhih
|| 7
'सम्पूर्ण
देवता इन्हीं के स्वरूप हैं। ये तेज की राशि तथा अपनी किरणों से जगत को
सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करने वाले हैं। ये ही अपनी रश्मियों का प्रसार
करके देवता और असुरों सहित सम्पूर्ण लोकों का पालन करते हैं।' ।।7।।
Indeed,
He is the very embodiment of all Gods. He is self-luminous and sustains
all with his rays. He nourishes and energizes the inhabitants of all
the worlds as well as the host of Gods and demons by his Rays. 7
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