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अंतस का संगीत

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :113
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9545

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मंच पर धूम मचाने के लिए प्रसिद्ध कवि की सहज मन को छू लेने वाली कविताएँ


'अंतस का संगीत' में सभी रंग के दोहे हैं। इसमें अभिव्यक्ति की इंद्रधनुषी छटा देखने को मिलती है। लोक-चेतना का रंग भी उन रंगों में से एक है-
छूट गया फुटपाथ भी, उस पर है बरसात।
घर का मुखिया सोचता, कहाँ बितायें रात।।

अंसार के दोहों में कबीर जैसा अक्खड़पन भी है। धर्म के नाम पर आडम्बर का विरोध करते हुए कवि कहता है-
सूफी-संत चले गये, सब जंगल की ओर।
मंदिर-मस्जिद में मिले, रंग-बिरंगे चोर।।

इस अर्थवादी युग में मानव के जीवन मूल्यों में आई गिरावट से कवि चिंतित है। अब भले-बुरे की पहचान कर पाना भी मुश्किल हो गया है। आम आदमी की इस बात को कवि ने एक दोहे में व्यक्त किया है-
अब किसको अच्छा कहें, किसको कहें खराब।
हर कोई हमको मिला, पहने हुये नकाब।।

कवि के मन में अपने देश के लिए प्रेम है। उसकी दृष्टि में ऋतुएं भी सात्विकता और वैभव से युक्त भारतवर्ष का अभिनन्दन करती हैं- चाँदी जैसा ताज है, सोने जैसे केश।
ऋतुयें अभिनन्दन करें, ऐसा अपना देश।।

''हिन्द मेरा मौलिद-ओ-मादा-ओ-वतन'' कहने वाले अमीर खुसरो ने भी इस भारतवर्ष को इसकी नेमतों के कारण स्वर्ग से भी बढ़कर माना है-
बस बहमा हाल ज खूबी व बिही।
हिन्द विहिरत अस्त व सवात रही।।

शायद इसीलिए भारत की अस्मिता के प्रतीक राम के प्रति अंसार की अगाध श्रद्धा उनकी रचनाओं में व्यक्त हुई है-
मन के काग़ज पर अगर, लिखलो सीता-राम।
घर बैठे मिल जाएंगे, तुमको चारों धाम।।

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