लोगों की राय

कविता संग्रह >> अंतस का संगीत

अंतस का संगीत

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :113
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9545

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

397 पाठक हैं

मंच पर धूम मचाने के लिए प्रसिद्ध कवि की सहज मन को छू लेने वाली कविताएँ


धीरे-धीरे छिन रहे सब मौलिक अधिकार।
आख़िर दोषी कौन है, हम सब या सरकार।।101

केवल अपने देश के, नेता हुये स्वतंत्र।
जनता ही परतंत्र थी, जनता है परतंत्र।।102

अनपढ़ सिंहासन चढ़ें, काबिल माँगे भीख।
मूरख बैठे रस पियें, प्रतिभा चूसे ईख।।103

अंधे गद्‌दी पा गये, बहरे हुये महान।
हम कहते हैं खेत की, वे सुनते खलिहान।।104

राजनीति का व्याकरण, कुर्सी वाला पाठ।
पढ़ा रहे हैं सब हमें, सोलह दूनी आठ।।105

सावधान रहिये सदा, अब उनसे श्रीमान।
जो कोई पहने मिले, खादी का परिधान।।106

इनकी टेढ़ी चाल को, नहीं सकोगे भाँप।
खादी पहने घूमते, इच्छाधारी साँप।।107

लक्ष्मण रेखा खींचते, फिरते हैं क्यों आप।
सुनली है क्या आपने, रावण की पदचाप।।108

जाने क्या हो देश का, भला करें अब राम।
घोड़े भी होने लगे, संसद में नीलाम।।109

किसको दुख बतलायें हम, किससे करें गुहार।
अंधा चौकीदार है, बहरा थानेदार।।110

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book