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धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार

अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

और जिस दिन आपको निःशब्द दर्शन की यह संभावना स्पष्ट होने लगेगी, उस दिन इसका अंतिम प्रयोग स्वयं पर किया जाता है। तब निःशब्द होकर अपने को देखा जा सकता है। और उस दिन आप जानेंगे कि मैं कौन हूं? उस दिन जीवन की पहली और बुनियादी समस्या हल होती है कि मैं कौन हूं? और जिसके समक्ष यह समस्या हल हो जाती है।

उसका जीवन - एक बिलकुल अभिनव, एक बिलकुल नया जीवन हो जाता है।

उसके जीवन में आमूल क्रांति हो जाती है।

उसके जीवन में क्रोध की जगह क्षमा का जन्म हो जाता है।

उसके जीवन में घृणा की जगह प्रेम का जन्म हो जाता है।

उसके जीवन में भय की जगह अभय का जन्म हो जाता है।

उसके जीवन में कांटे विलीन हो जाते और फूल खिल जाते हैं।

उसके जीवन में अर्थहीनता हो जाती है, सार्थकता पैदा हो जाती है।

फिर उसे मनोरंजन की तलाश नहीं होती। फिर वह चौबीस घंटे तक आनंद की थिरक में नाचता रह जाता है। फिर श्वास-श्वास, फिर कण-कण, फिर उठना और बैठना सभी प्रभु का कृत्य हो जाता है। फिर सब कुछ एक आनंद में बदल जाता है। फिर ऐसा जैसे जीवन के आनंद-सागर में कोई बह जाता हो। सब तरफ फिर रोशनी दिखायी पड़ने लगती है और सब तरफ फिर सुगंध का अनुभव होने लगता है। और सब तरफ प्रभु की छवि दिखायी पड़ने लगती है। फिर एक पत्ते में भी सारे विराट विश्व के दर्शन हो जाते हैं। फिर वैसा व्यक्ति जब एक फूल को देखता है--गुलाब के फूल को देखता है, तो उसे गुलाब का फूल नहीं दिखायी पड़ता, फूल के पीछे की शाखाएं फिर शाखाओं के नीचे की जड़ें, और जड़ों से जुड़ी हुई पृथ्वी। फिर फूल पर आयी हुई सूरज की किरणें, और सूरज जब संयुक्त दिखायी पड़ने लगता है फिर वह प्रविष्ट हो जाता है विराट् में और सारे जीवन का दर्शन उसे शुरू हो जाता है।

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