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धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार

अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546

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ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

प्रश्न--अस्पष्ट

उत्तर--कोई सवाल ही नहीं है। यानी मेरा कहना यह है कि विवाह जो है ऐसा नहीं होना चाहिए कि हिंदू का धर्म, मुसलमान का धर्म, ऐसा होरिजेंटल नहीं, वर्टिकल होना चाहिए-- बच्चे का धर्म, जवान का धर्म, बूढे़ का धर्म। वह जो विभाजन होगा वह ऐसा होना चाहिए--नीचे से ऊपर की तरफ। उस विभाजन में तो कोई वैज्ञानिक का मतलब होता है।

हिटलर जैसे हुकूमत में आया तो उसने क्या किया आते से ही? उसने कहा, अब बच्चों को हम खेल-खिलौने, गुड्डा-गुड्डी यह नहीं बनाने देंगे। तोपें बनानी चाहिए, बंदूकें बनानी चाहिए खिलौने की जगह। और बच्चे की पहले दिन भी उसके झूले पर लटकानी हो तो तोप लटकानी है। क्योंकि हमें सैनिक बनाना है, तो उसकी आत्मा को साक्षात्कार करनी होगी, वह उसके खेल का हिस्सा हो जाएगा। पहले वह तोप से खेले, कल वह फिर तोप चलाना खेल समझेगा। उसमें कोई बाधा नहीं रह जाएगी। आज खेलेगा तोप से, कल तोप चलाने को खेल समझ पाएगा। वह उसकी जिंदगी का हिस्सा हो जाएगी। उसे कभी कल्पना भी नहीं उठेगी।

प्रश्न--जैसे अभिमन्यु?

उत्तर--हां, पहले से जो भी हमें बनाना है जीवन को। अगर हमें जीवन को एक धार्मिक जीवन बनाना है तो बच्चे के पहले दिन से उसकी शुरुआत हो जानी चाहिए। और यह असंभव है कि बच्चे अधार्मिक हों, जवान अधार्मिक हों, बूढे़ अचानक धार्मिक हो जाएं। यह संभव है? क्योंकि बूढ़ा होना तो उसकी फ्लावरिंग है, उसी से निकलेगा। तो अगर बच्चे धार्मिक नहीं हैं, जवान धार्मिक नहीं हैं तो बूढे़ झूठे धार्मिक होंगे, मेरा कहना है। वे कभी सच्चे धार्मिक नहीं होंगे। सारे जीवन का आधार अधार्मिक होगा। और फिर अचानक एक दिन मौत को सामने देखकर वे घबरा जाएंगे और प्रार्थना करने लगेंगे। उस प्रार्थना का कोई बहुत मूल्य नहीं है।

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