लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> अमृत द्वार

अमृत द्वार

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :266
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9546

Like this Hindi book 10 पाठकों को प्रिय

353 पाठक हैं

ओशो की प्रेरणात्मक कहानियाँ

वह एक रुपया छोड़ कर चोर भागा। वह घबड़ा गया था बहुत इतना वह कभी किसी से नहीं घबड़ाया। क्योंकि जिनसे मिला था वह भी उसी तरह के लोग थे जिस तरह का यह आदमी था। कोई छोटा चोर है, कोई बड़ा चोर है। जिनसे भी मुलाकात हुई थी वे एक ही जाति के लोग थे। यह आज पहली दफा एक अनूठे और अजनबी आदमी से, स्ट्रेंजर से मिलना हो गया था, जिसको समझना मुश्किल था। बहुत घबड़ा गया था। वह भागने लगा दरवाजे से निकल कर। उस साधु ने कहा कि रुको। दरवाजा तुमने खोला था, कम से कम उसे बंद कर जाओ। किसी का दरवाजा खोलो तो बंद कर दिया करो। दरवाजा बंद कर दो क्योंकि रुपए कल तुम्हारे खत्म हो जाएंगे लेकिन द्वार बंद करके तुम जो प्रेम मेरी तरफ प्रकट कर जाओगे वह आगे भी काम पड़ सकता है। उस चोर ने जल्दी से दरवाजा बंद किया। उस फकीर ने उसे धन्यवाद दिया कि धन्यवाद मेरे मित्र। जमाने बहुत बुरे हो गए हैं, कौन किसका दरवाजा बंद करता है।

वह चोर चला गया। एक वर्ष बाद वह चोर किसी दूसरी चोरी में पकड़ा गया, उस पर मुकदमा चला। उस पर और चोरियां थी उन्हीं चोरियों में पुलिस ने यह भी पता लगाया कि एक रात उसने गाँव बाहर जो साधु है उसके झोपड़े पर भी चोरी की थी। चोर बहुत घबड़ाया हुआ था। उस साधु को भी अदालत में बुलवाया गया। चोर बहुत डरा हुआ था। जब उस साधु ने इतना भी कह दिया कि हाँ, इस आदमी को मैं पहचानता हूँ यह एक रात आया था तो किसी और प्रमाण की जरूरत नहीं रह जाएगी। वह इतना प्रसिद्ध आदमी था। उसका एक शब्द कि यह आदमी चोरी करने आया था, काफी था सब प्रमाण पूरा हो जाएगा। चोर बहुत डरा हुआ था।

फिर वह साधु आया। न्यायाधीश ने उससे पूछा कि तुम इस आदमी को पहचानते हो? उस साधु ने कहा, भलीभांति। यह तो मेरे पुराने दोस्त हैं, इन्हें मैं अच्छी तरह जानता हूँ। चोर घबड़ाया। उस न्यायाधीश ने कहा, कभी यह तुम्हारे यहाँ चोरी करने आया था? उस साधु ने कहा, कि नहीं, चोरी करने तो यह कभी भी नहीं आया। हाँ दस रुपए जरूर मैंने इसे भेंट किए थे लेकिन वह चोरी नहीं थी, मैंने भेंट किया था। एक रुपया उसमें से अब भी मेरे ऊपर उधार है, वह मैं ले आया हूँ उसको एक रुपया मुझे देना है। उधारी मेरे ऊपर है। और यह आदमी तो बहुत प्यारा है। मैंने इसे रुपए भेंट किए थे, इसने मुझे धन्यवाद दे दिया था, बात समाप्त हो गई थी। इसका चोरी से क्या संबंध है? वह न्यायाधीश बहुत हैरान हो गया। उसने कहा कि तुम क्या कहते हो? यह आदमी तुम्हारे घर चोरी करने गया था। उस फकीर ने कहा, अब से मेरे भीतर का चोर मर गया, मुझे कोई चोर दिखायी नहीं पड़ता है। मुझे माफ करें, किसी चोर को पूछें तो वह इसकी चोरी के बाबत कुछ बता सकेगा। मेरे भीतर का चोर जब से मर गया, मुझे कोई चोर नहीं दिखाई पड़ता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book