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धर्म एवं दर्शन >> असंभव क्रांति

असंभव क्रांति

ओशो

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :405
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9551

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माथेराम में दिये गये प्रवचन

अगर कोई चीजें भूलने से मिटती होतीं, तब तो बहुत आसान बात थी। तब तो एक आदमी शराब पी लेता और और दुःख मिट जाता। लेकिन शराब पीने से दुःख मिटता नहीं, केवल भूलता है। आदर्शों की शराब पी लेने से भी जीवन के तथ्य बदलते नहीं, मौजूद रहते हैं।

यह हमारा ही देश है, यह अहिंसा की शराब हजारों साल से पी रहा है। लेकिन एक भी आदमी अहिंसक नहीं हो पाया है। हिंसा मौजूद है। हमारे चित्त में सब तरफ हिंसा मौजूद है। लेकिन हम अहिंसा की बातें करके अपनी हिंसा को छिपाए रखते हैं। जरा सी चोट और हमारे हिंसा के फब्बारे निकलने शुरू हो जाते हैं। हमारे कवि हिंसा के गीत गाने लगते हैं। हमारे नेता हिंसा की बात करने लगते हैं। हमारे साधु-संन्यासी भी कहने लगते हैं, अहिंसा की रक्षा के लिए अब हिंसा की बहुत जरूरत है। वह सारी अहिंसा एक क्षण में विलीन हो जाती है।

हम हजारों साल से प्रेम की बातें करते रहे हैं। लेकिन हमारे जीवन में कहाँ है प्रेम? हम दया की, सेवा की बातें करते रहे हैं। कहाँ है दया और कहाँ है सेवा और हमारी सारी सेवा और हमारी सारी दया भी हमारे गहरे से गहरे स्वार्थों की अनुचर हो गई है।

एक आदमी को मोक्ष जाना है, इसलिए वह दया करता है, दान करता है। यह दया और दान है, या कि सौदा है एक आदमी को आत्मा को पाना है, इसलिए वह सेवा करता है गरीबों की। यह सेवा है, या अपने स्वार्थ के लिए गरीब को भी उपकरण बनाना है एक चर्च में एक पादरी ने रविवार के दिन आने वाले बच्चों को समझाया कि जिन्हें भी स्वर्ग जाना है, उन्हें सेवा जरूर करनी चाहिए। उन बच्चों ने पूछा, हम कैसे सेवा करें, क्योंकि स्वर्ग तो हम सब जाना चाहते हैं उस पादरी ने कहा, कई प्रकार हैं सेवा के। डूबता हुआ कोई हो तो उसे बचाना चाहिए। किसी घर में आग लग गई हो तो जाकर घर का सामान या व्यक्तियों को बाहर निकालना चाहिए। या बहुत सरल सी बात, कोई भी, किसी तरह का किसी को सहायता पहुँचानी हो तो पहुँचानी चाहिए।

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